मधुमक्खी पालन ने बदली किसानों की किस्मतबुंदेलखंड मध्य भारत में बसा एक शुष्क और खेती के लिए मुसकिल क्षेत्र है. यहां के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं, लेकिन पानी की कमी और कम उपजाऊ मिट्टी के कारण खेती करना मुश्किल हो जाता है. हमीरपुर जिला भी बुंदेलखंड का हिस्सा है. यहां की 75% कृषि वर्षा पर निर्भर है. इसके अलावा, 67% किसान बहुत छोटे भूखंडों (2 हेक्टेयर से कम) पर खेती करते हैं.
हमीरपुर का मौसम गर्मियों में बहुत गर्म और सर्दियों में ठंडा रहता है. यहां कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं जैसे तिल, बाजरा, सरसों, सूरजमुखी, आंवला, पपीता और नींबू. साथ ही, यहां नीम, बबूल, अर्जुन और मोरिंगा जैसे पेड़ भी पाए जाते हैं, जो मधुमक्खियों के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं.
कृषि विज्ञान केंद्र, हमीरपुर और बांदा कृषि विश्वविद्यालय ने मिलकर किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन की योजना बनाई. यह योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY-RAFTAAR) के तहत शुरू की गई. इस योजना का नाम था- “मधुमक्खी पालन की उद्यमिता: बुंदेलखंड में किसानों की आय को दोगुना करने का एक तरीका”.
इस योजना में गांव के युवा, छोटे किसान और स्कूल छोड़ चुके बच्चों को जोड़ा गया. इन्हें किसान हित समूह (FIG) के रूप में संगठित किया गया. हमीरपुर में ऐसे 7 समूह बनाए गए. सभी को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी गई और उन्हें जरूरी उपकरण जैसे- छत्ता (हाइव), मधुमक्खी बॉक्स, स्मोकर आदि दिए गए.
मधुमक्खियों के लिए ऐसे स्थान चुने गए जो गर्म हवा और पानी भराव से दूर हों और जहां पीने का पानी मौजूद हो. प्रशिक्षण के दौरान किसानों को "देख कर सीखना" और "भरोसे से सीखना" जैसी आसान विधियों से सिखाया गया.
यह योजना किसानों के लिए एक नई उम्मीद बनकर आई. जहां एक तरफ उन्हें शहद और पराग से कमाई हुई, वहीं दूसरी ओर उनकी फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर हुई क्योंकि मधुमक्खियां परागण (pollination) का काम करती हैं. इससे खेती भी बेहतर हुई.
हमीरपुर जिले में मधुमक्खी पालन की यह पहल एक बड़ी सफलता रही. इसने साबित किया कि अगर किसानों को सही जानकारी और साधन दिए जाएं, तो वे अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं. यह योजना न केवल कम जमीन वाले किसानों के लिए फायदेमंद रही, बल्कि बुंदेलखंड जैसे कठिन इलाके के लिए भी एक नई दिशा साबित हुई.
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