किसानों को प्रदेश के कृषि जलवायु के अनुकूल गुणवत्ता के बीज मिले, इसके लिए योगी सरकार ने बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश में ही बीज उत्पादन की रणनीति तैयार की है. इससे किसानों के लिए स्थानीय स्तर पर गुणवत्ता के बीज तैयार होने से उनकी उपज और उपज की गुणवत्ता में सुधार होगा. दरअसल, फसल के लिए बीज सबसे महत्वपूर्ण कृषि निवेश है. बीज की गुणवत्ता पर ही फसल की उपज और गुणवत्ता निर्भर करती है. अगर बीज खराब है तो खेत की तैयारी से लेकर बीज और बुवाई के समय डाली जाने वाली खाद की लागत बर्बाद हो जाती है. साथ ही उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए तो बीज की गुणवत्ता और मायने रखती है.
उल्लेखनीय है कि कृषि योग्य भूमि का सर्वाधिक रकबा (166 लाख हेक्टर) उत्तर प्रदेश का है. कृषि योग्य भूमि का 80 फीसद से अधिक रकबा सिंचित है. वहीं, प्रदेश के करीब 3 करोड़ परिवारों की आजीविका कृषि पर निर्भर हैं. उत्तर प्रदेश खाद्यान्न और दूध के उत्पादन में देश में नंबर एक, फलों और फूलों के उत्पादन में दूसरे और तीसरे नंबर पर है.
बात जब बीज की आती है तो प्रदेश को कुल उपयोग का करीब आधा हिस्सा दूसरे राज्यों से मांगना पड़ता है. इसके लिए सरकार को हर साल करीब 3000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं. सभी फसलों के हाइब्रिड बीज तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से आते है. बात करें बीज के आंकड़ों कि तो विभागीय आंकड़ों के अनुसार गेहूं के 22 फीसदी, धान के 51 फीसदी, मक्का के 74 फीसदी, जौ के 95 फीसदी, दलहन के 50 फीसदी और तिलहन के 52 फीसदी बीज गैर राज्यों से आते हैं.
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योगी सरकार ने बीज उत्पादन की एक व्यापक योजना तैयार की है. इसके तहत प्रदेश के नौ कृषि जलवायु क्षेत्रों में होने वाली फसलों के मद्देनजर पांच बीज पार्क (वेस्टर्न जोन, तराई जोन, सेंट्रल जोन, बुंदेलखंड और ईस्टर्न जोन) पीपीपी मॉडल पर बनाए जाएंगे. हर पार्क का रकबा न्यूनतम 200 हेक्टेयर का होगा. कृषि विभाग के पास बुनियादी सुविधाओं के साथ ऐसे छह फार्म उपलब्ध हैं. इसमें से दो फार्म 200 हेक्टेयर, दो फार्म 200 से 300 और दो फार्म 400 हेक्टर से अधिक के हैं. राज्य सरकार इनको इच्छुक पार्टियों को लीज पर दे सकती है.
सीड पार्क बनाने से सालाना करीब तीन हजार करोड़ रुपये की बचत होगी. इसके अलावा प्लांटवार अतिरिक्त निवेश आएगा. प्लांट से लेकर लॉजिस्टिक लोडिंग, अनलोडिंग, परिवहन में स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा. सीड रिप्लेसमेंट दर (एसएसआर) में सुधार आएगा, इसका असर उपज पर पड़ेगा.
सबसे उर्वर भूमि, सर्वाधिक सिंचित रकबे के बावजूद प्रति हेक्टेयर प्रति कुंतल उपज के मामले में यूपी पीछे है. इसके लिए अन्य वजहों के साथ क्वालिटी के बीजों की अनुपलब्धता भी एक प्रमुख वजह है. विभागीय आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गेहूं का प्रति हेक्टेयर प्रति कुंतल उत्पादन 26.75 कुंतल है, जबकि पंजाब का सर्वोच्च 40.35 कुंतल है. इसी तरह धान का उत्पादन 37.35 कुंतल है, जबकि हरियाणा का 45.33 कुंतल है. अन्य राज्यों की तुलना में इसी तरह का अंतर चना और सरसों के उत्पादन में भी है. गुणवत्ता के बीज से इस अंतर को 15 से 20 फीसद तक कम किया जा सकता है.
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