हर साल देश की राजधानी दिल्ली में आसपास के राज्यों में धान की पराली जलाए जाने से प्रदूषण तेजी से बढ़ता है. इस साल पंजाब, हरियाणा में सितंबर मध्य से ही पराली जलाने के मामले सामने आए हैं, जबकि पुराने पैटर्न को देखें तो किसान 1 अक्टूबर से पराली जलाया करते थे. सुप्रीम कोर्ट ने भी पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाते हुए उल्लंघन करने वाले किसानों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन बावजूद इसके कई किसान पराली जला रहे हैं. ऐसे में किसानों का पक्ष रखने के लिए किसान मजदूर संघर्ष समिति के नेता गुरबचन सिंह छाबा ने शुक्रवार को कहा कि कोई भी किसान पराली नहीं जलाना चाहता, लेकिन वे मजबूर हैं. सरकार को इस मुद्दे पर एक स्थायी समाधान निकालना चाहिए.
गुरबचन सिंह छाबा ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए बताया कि खेत को अगली फसल की बुआई के लिए तैयार करना बहुत महंगा पड़ता है. सरकार हर साल नई मशीनें बनाती है, लेकिन पिछले साल की मशीनें बेकार हो जाने के कारण अगले साल काम नहीं आती हैं. इस कारण किसानों को हर साल मशीनें खरीदनी पड़ती हैं, जो उनके लिए स्थायी समाधान नहीं है. सरकार को इसका स्थायी समाधान निकालना चाहिए.
वहीं, इससे पहले बुधवार को पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के चेयरमैन डॉ. आदर्श पाल विग ने जानकारी दी कि 15 सितंबर से 25 सितंबर तक राज्य में पराली जलाने के 93 मामले सामने आए हैं. अमृतसर, गुरदपुर और तरनतारन में पराली जल्दी कट जाती है. पिछले दो सालों में पराली जलाने की घटनाओं में भारी गिरावट दर्ज की गई है. पिछले साल यानी 2023 में करीब 36,000 पराली जलाने के मामले सामने आए थे, जबकि उससे पहले 2022 में 70,000 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं. पिछले दो सालों में पराली जलाने की घटनाओं में 46 फीसदी से 50 फीसदी तक की कमी आई है.
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पीपीसीबी चेयरमैन ने कहा, "आज 60 लाख टन पराली में से 40 लाख टन पराली विभिन्न उद्योगों में औद्योगिक बॉयलरों में जलाई जा रही है. पंजाब सरकार द्वारा किए गए प्रावधान के अनुसार, राज्य में धान आधारित औद्योगिक बॉयलर लगाने वालों को 25 करोड़ रुपये का लाभ दिया जाएगा. कंप्रेस्ड बायोगैस के लिए 4 यूनिट स्थापित की गई हैं और 7-8 प्लांट लगाने की योजना है. पराली के भंडारण के लिए सरकारी और पंचायती जमीन भी दी गई है.''
पंजाब के मंत्री बलबीर सिंह ने कहा कि किसानों से आग्रह किया कि अगर उन्हें कोई समस्या है तो वे उनसे आकर मिलें. राज्य सरकार के पास पराली जलाने से निपटने के लिए पर्याप्त मशीनरी और उपकरण हैं. पराली जलाने से सबसे पहले उसे जलाने वाले व्यक्ति, उसके परिवार के सदस्यों और उसके गांव के लोगों पर असर पड़ता है, क्योंकि ये सभी लोग इसे सीधे सांस के जरिए अंदर ले रहे होते हैं. इससे खांसी, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
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