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क्या होता है नीमास्त्र, अग्निअस्त्र और ब्रह्मास्त्र...यह कैसे होता है तैयार? 

क्या होता है नीमास्त्र, अग्निअस्त्र और ब्रह्मास्त्र...यह कैसे होता है तैयार? 

Natural Farming: अब तक भारत में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्राकृतिक खेती के तहत कवर क‍िया जा चुका है. इस तरह की खेती में कोई बाहरी इनपुट इस्तेमाल नहीं क‍िया जाता. साथ ही बीजों की स्थानीय किस्मों का उपयोग क‍िया जाता है. इसल‍िए इसमें लागत कम आती है. 

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प्राकृतिक खेती के कीटनाशक कौन-कौन से हैं. प्राकृतिक खेती के कीटनाशक कौन-कौन से हैं.

धरती को रासायन‍िक उर्वरकों की मार से बचाने के ल‍िए केंद्र सरकार अब प्राकृत‍िक खेती पर जोर दे रही है. ऐसी खेती में खाद के तौर पर म‍िट्टी एवं फसलों पर जीवामृत एवं घनजीवामृत का प्रयोग किया जाता है. लेक‍िन क्रॉप प्रोटक्शन यानी फसल सुरक्षा के लिए क्या इस्तेमाल होता है. क्या आप इसे जानते हैं. दरअसल,  प्राकृत‍िक खेती में कीटनाशक के तौर पर नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र और अग्निअस्त्र का प्रयोग किया जाता है. प्राकृतिक खेती में फसलों को कीटों एवं रोगों से बचाने के लिए कई वनस्पतियों की पत्तियों के काढ़े का प्रयोग किया जाता है. इन कीटनाशकों को तैयार करने की व‍िध‍ि जानने से पहले यह समझ लेते हैं क‍ि अभी देश में ऐसी खेती का स्टेटस क्या है.

कृष‍ि मंत्रालय के अनुसार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई राज्यों ने पहल की है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में इसका सबसे ज्यादा एर‍िया है. अब तक भारत में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्राकृतिक खेती के तहत कवर क‍िया जा चुका है. इस तरह की खेती में कोई बाहरी इनपुट इस्तेमाल नहीं क‍िया जाता. साथ ही बीजों की स्थानीय किस्मों का उपयोग क‍िया जाता है. 

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नीमास्त्र क्या है? 

यह एक कीट नियंत्रक (Pest Controller) काढ़ा है. रस चूसने वाले कीटों एवं लीफ माइनर के नियंत्रण के लिए यह एक प्रभावी कीट नियंत्रक है. इसे बनाने के लिए 5 क‍िलोग्राम नीम की बारीक पत्तियों को 100 लीटर पानी में 5 लीटर देसी गाय के गौमूत्र, 1 क‍िलोग्राम देसी गाय का गोबर डालकर 2-3 मिनट तक अच्छी तरह हिलाते हैं. ड्रम का मुंह सूती कपड़े से बांध दिया जाता है. फ‍िर 48 घंटे बाद नीमास्त्र तैयार हो जाता है. 

इस्तेमाल कैसे करें?

कृषि वैज्ञान‍िकों के अनुसार नीमास्त्र का प्रयोग 6 महीनों तक कर सकते हैं. प्रयोग के लिए 5-6 लीटर नीमास्त्र को 250 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव कर सकते हैं.

अग्निअस्त्र क्या है?   

इसका उपयोग तनाछेदक, फलछेदक (फ्रूट बोरर) और अन्य विभिन्न प्रकार के इल्लियों (केटर पिल्लर्स) का मैनेजमेंट करने के लिए किया जाता है. इसे बनाने के लिए आधा क‍िलोग्राम हरी मिर्च, आधा क‍िलोग्राम लहसुन, पांच क‍िलोग्राम नीम की पत्तियों को अच्छी तरह से पीसकर मिश्रण तैयार किया जाता है. मिश्रण में 20 लीटर देसी गाय का गौमूत्र मिलाकर 20 मिनट तक उबाला जाता है. मिश्रण को 48 घंटे रखने के बाद सूती कपड़े से छान लिया जाता है.  

प्रयोग कैसे करें? 

तैयार अग्निअस्त्र को 5-6 लीटर अग्निअस्त्र को 250 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव कर सकते हैं. इससे फलछेदक और इल्लियों पर काबू क‍िए जाने का दावा क‍िया गया है. 

ब्रह्मास्त्र क्या है? 

इसका उपयोग फसलों के बड़े आकार के छेदक (बोरर), कीट-पतंगों और इल्लियों (केटर पिल्लर्स) के मैनेजमेंट के लिए किया जाता है. इसे बनाने के लिए नीम की 3 क‍िलोग्राम पत्तियां, 2 क‍िलोग्राम करंज, सीताफल एवं धतूरे की बारीक पत्तियां और 10 लीटर देसी गाय के गौमूत्र के मिश्रण को मिलाकर लगभग 20-25 मिनट तक उबालें. फिर मिश्रण को 48 घंटे के लिए ठंडा करके सामग्री को सूती कपड़े से छान लें.  

इस्तेमाल कैसे करें?

एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव के लिए 5-6 लीटर ब्रह्मास्त्र को 250 लीटर पानी में घोलकर तना छेदक, कीट-पतंगों और इल्लियों को काबू करने के ल‍िए उपयोग करें. 

प्राकृत‍िक खेती का महत्व 

  • नेचुरल फार्म‍िंग यानी प्राकृत‍िक खेती में किसानों को किसी भी प्रकार के केम‍िकल, कीटनाशक तथा बीजों को खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इस प्रकार की खेती में किसान रासायनिक खादों और कीटनाशकों के स्थान पर अपने घर पर बनाई गई सामग्रियों का प्रयोग करते हैं. 
  • भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद ने अपनी एक पत्र‍िका में बताया है क‍ि प्राकृत‍िक खेती में लागत कम आती है. ऐसी खेती से म‍िट्टी में मौजूद जैव विविधता का विकास होता है. म‍िट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है तथा फसलों की पैदावार अच्छी होती है. 
  • उपज की अच्छी गुणवत्ता होने के कारण बाजार में दाम भी अच्छे मिलते हैं. सेहत से जुड़ी चुनौत‍ियों की वजह से लोगों का झुकाव प्राकृत‍िक और ऑर्गेन‍िक कृष‍ि उत्पादों की ओर बढ़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों को होने वाले नुकसान के प्रभावों को भी ऐसी खेती कम करती है. 
  • प्राकृत‍िक खेती में पौधों को पानी की कम जरूरत होती है. जमीन की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ म‍िट्टी की रासायनिक एवं जैविक गुणवत्ता भी बढ़ जाती है.  

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