UP Farmers: गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग की वर्मी बायोटेक्नोलॉजी प्रयोगशाला में प्रोफेसर केशव सिंह के निर्देशन में हुए शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. शोध में रासायनिक उर्वरक और वर्मी कंपोस्ट को लेकर खेत में फसल पर अलग-अलग अध्ययन किया गया. जिसमें पाया गया कि रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग वातावरणीय प्रदूषण तथा मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ-साथ जीव जंतुओं की अस्तित्व के लिए भी खतरा बन गया है.
इनका कुप्रभाव फसलों के लिए उपयोगी सूक्ष्म जीवों पर पड़ रहा है. मसलन, खेत मित्र कीट केंचुआ, रेड लेडी बर्ड बीटल, कीट मेंटिस, जिओकारिस कीट, मकड़ी आदि अब खत्म होती जा रही हैं. किसान तक से खास बातचीत में गोविवि के प्रोफेसर केशव सिंह ने बताया कि रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होने के साथ-साथ भूमि का उपजाऊपन कम होता जा रहा है. रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग वातावरणीय प्रदूषण तथा मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ-साथ जीव जंतुओं की अस्तित्व के लिए भी खतरा बन गया है.
सिंह ने बताया कि इनका कुप्रभाव फसलों के लिए उपयोगी सूक्ष्म जीवों पर पड़ रहा है. आज कम लागत में अधिक उपज की आवश्यकता है जिससे किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुदृढ़ हो सके. इसके लिए हमें जैविक खेती को अपनाना होगा. जानवरों के मलमुत्र मुर्गीफार्मो के अपशिष्ट तथा पौधों की पत्तियों आदि पदार्थो का कोई समुचित प्रबंधन नहीं हो पाने के कारण नुकसानदायक होने के साथ-साथ गंदगी पैदा करते हैं. यहां तक की फसलों के अपशिष्ट खेतों में जला दिए जाते हैं जिसके कारण खेतों में पाए जाने वाले जीव - जंतु मृत हो जाते हैं, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित होता है तथा धुआं वातावरण को प्रदूषित भी करता है.
प्रोफेसर केशव सिंह ने आगे बताया कि जैविक खादों के विभिन्न घटकों में से एक है वर्मीकम्पोस्टिंग के द्वारा केंचुआ खाद तथा उसका प्रयोग करना, वर्मी कंपोस्ट बेकार जैविक कूड़े - कचरे द्वारा जैविक विधि से तैयार जैविक खाद होती है. यह रासायनिक खादों की अपेक्षा बहुत ही कम खर्चीली होती है. यह जैविक होने के कारण आसानी से अपने अवयवयो में विघटित हो जाता है. इसके प्रयोग से वातावरण दूषित होने की संभावना नहीं होती है.
यह हानिकारक कीटों तथा रोगों से पौधों की रक्षा करती है. आज कम लागत में अधिक उपज की आवश्यकता है, जिससे किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुदृढ़ हो सके. इसके लिए हमें जैविक खेती को अपनाना होगा. वर्मीवाश यह तरल जैविक खाद वर्मीवास कलेक्टिंग एकत्रीकरण विधि द्वारा निकाली जाती है. वर्मीवाश का प्रयोग फसलों के ऊपर छिड़काव के लिए करते हैं. इसका तीन या चार बार छिड़काव करने से फसलों की सघन वृद्धि तथा अच्छी पैदावार होती है.
प्राणी विज्ञान विभाग प्रो. केशव सिंह ने कहा कि यह खाद पौधों को बहुत से रोगों तथा कीटों से बचाती है. वर्मी कम्पोस्ट एवं वर्मीवाश में सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, नाइट्रोजन, खनिज लवण, एंजाइम, हॉर्मोंस तथा विटामिन के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक गुण समुचित मात्रा में पाया जाता है. इसका उत्पादन तथा प्रयोग बहुत ही आसन तथा कम खर्चीला होने के कारण छोटे किसानों के लिए यह एक वरदान सिद्ध हो रहा है. वर्मीकम्पोस्ट और वर्मीवाश के साथ जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से पौधों में अच्छी वृद्धि के साथ-साथ कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है. आज आवश्यकता है जागरूकता की जिसके द्वारा अधिक से अधिक लोगों को जैविक खाद की जानकारी, उत्पादन प्रयोग की विधि तथा लाभ को बता कर बेरोजगारी को भी दूर किया जा सकता है. वर्मीकम्पोस्टिंग बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार का एक अच्छा साधन है क्योंकि खेतों बागवानी एवं घरों के बेकार कूड़े -कचरे को इकट्ठा करके केंचुए की सहायता से वर्मीकम्पोस्ट में बदलकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
प्रोफेसर केशव ने बताया कि तैयार वर्मीकम्पोस्ट 10 से ₹15 प्रति किलो की दर से बाजार में जैविक खाद के रूप में बिकता है. वर्मी कंपोस्ट एवं वर्मीवाश के प्रयोग से रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के प्रयोग से बचने के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है. रासायनिक खादों की अपेक्षा यह अधिक पैदावार भी प्रदान करता है. केंचुए को पालकर वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के अतिरिक्त केंचुआ को खाद के साथ खेतों में डालने पर ये वहां प्रजनन करके अपनी संख्या बढ़ा लेते हैं तथा खेतों के अवशिष्ट जैविक पदार्थ को बार-बार भोजन के रूप में ग्रहण कर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं. रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य की क्षति बच जाती है.
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यहां तक की द्वितीय हरित क्रांति का मूल आधार ही जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशक होंगे क्योंकि बिना इसके प्रयोग के हम इतनी बड़ी जनसंख्या को प्रदूषण मुक्त वातावरण के साथ भोजन सामग्री उपलब्ध नहीं कर सकते हैं. रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग को रोक कर हम कई जीवों की प्रजातियां को विलुप्त होने से बचा सकते हैं.
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