किसान अपनी फसल की क्वालिटी और उत्पादन में वृद्धि के लिए रोज नए-नए तरीके अपनाते रहते हैं. कई किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं तो कई किसान प्राकृतिक और जैविक खादों का इस्तेमाल करते हैं. वहीं रबी सीजन में होने वाली दलहन और तिलहन फसलों में कई तरह के रोग भी लग जाते हैं. दलहन और तिलहन के फसलों के लिए एक बेहद ही चमत्कारी दवा ट्राइकोडर्मा है.
ये कीटनाशक उत्पाद बाजार में एक नया नाम है. इससे न सिर्फ किसानों की फसल को सुरक्षा मिलती है. बल्कि कृषि लागत में भी कमी आती है. आइए जानते हैं कि ट्राइकोडर्मा क्या है और इससे किसानों को कैसे फायदा होता है.
ट्राइकोडर्मा एक गुणी और चमत्कारी दवा है. इसका उपयोग कई प्रकार के फसलों के लिए किया जाता है. खास कर दलहनी और तिलहनी फसलों के लिए. ये मिट्टी जनित कवकों द्वारा पैदा होने वाले जड़ गलन, तना गलन, कॉलर रॉट और उकठ रोग के बचाव और निदान के लिए बेहतर दवा होता है. ट्राईकोडर्मा मिट्टी में रोग उत्पन्न करने वाले हानिकारक कीटों को बढ़ने से रोकता है. साथ ही उन्हें धीरे-धीरे ऐसे कीटों की वृद्धि को रोककर जो धीरे-धीरे फसलों को नष्ट करते हैं. इसके इस्तेमाल से हानिकारक कीट या रोग फसलों की जड़ों के आस-पास पनपने में असमर्थ हो जाते हैं.
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ट्राइकोडर्मा का उपयोग बीज के उपचार और पौधों के उपचार के लिए किया जाता है. अगर आपके दलहन या तिलहन फसलों में कीट लगे है तो आप इसको इस तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर आप इसका उपयोग बीज के उपचार के लिए कर रहे हैं तो सबसे पहले आप 6-10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार कर सकते हैं. साथ ही बुवाई से पहले भूमि उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा की 2-2.5 किलोग्राम 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर उपयोग में लिया जा सकता है.
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