रबी सीजन में दलहन फसलों की बुवाई बड़े पैमाने पर की जाती है. आमतौर पर किसानों को दलहन की खेती करना एक आसान काम लगता है. लेकिन इस महीने दलहन फसलों में कई प्रकार के कीटों के संक्रमण का खतरा बना रहता है. लेकिन किसान कीटों की पहचान और उसका प्रबंधन करके फसलों को नुकसान होने से बचा सकते हैं. बता दें कि दलहन फसलों में कजरा कीट और जाला कीटों के संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. ये खतरनाक कीट फसल के कल्ले पर अटैक करते हैं. ऐसे में यहां जान लेना चाहिए कि पौधे में नए कल्ले बनते हैं तभी उपज भी बढ़ती है. कल्ले का अर्थ नई कोपलों से है जो सभी फसलों में बनती हैं. दलहन में भी कल्ले बनते हैं और उसी पर फूल और फल बनते हैं. कुछ कीट इसी कल्ले पर हमला बोलते हैं और फसल की पैदावार को चौपट कर देते हैं. इस तह के कीटों को आम बोलचाल की भाषा में पिल्लू भी कहा जाता है.
इन्हीं समस्याओं से निजात के लिए बिहार कृषि विभाग ने दलहन फसलों में लगने वाले इन कीटों की पहचान और उनके प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका बताया है. इस तरीके को अपनाकर किसान दलहन फसलों को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.
किसानों को समय-समय पर अपनी फसल का निरिक्षण करते रहना चाहिए, जिससे समय पर कीट के प्रकोप के बारे में पता चल सके. अब बात करें कजरा कीट के लक्षण और पहचान कि तो कजरा कीट काले और भूरे रंग के होते हैं. इन कीटों का आकार 4 सेंटीमीटर तक हो सकता है. ये कीट रात के दौरान सक्रिय होकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. यह कीट नए पौधों को सतह से काटकर गिरा देता है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है.
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कजरा कीट से बचाव के लिए किसानों को दलहन फसलों की बुवाई से पहले बीजों का क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत की 6 मिली मात्रा को एक किलो बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए. इसके अलावा दलहन की खड़ी फसलों पर भी क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत की 2.5 मिली मात्रा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव भी किया जा सकता है.
दलहन फसलों में जाला कीट के संक्रमण से पौधे की पत्तियों के चारों तरफ जाल बन जाता है. इन पत्तियों को जाल से कवर करने के बाद यह कीट पत्तियों को खा जाते हैं. जाला कीट के कीड़े पीले और हरे रंग के होते हैं. इनकी लंबाई 2 सेंटीमीटर तक होती है. इस कीट के संक्रमण से फसल की बुवाई के बाद का विकास प्रभावित होता है.
जाला कीट से फसलों के बचाव के लिए किसानों को खेतों की समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करते रहना चाहिए. इस कीट से छुटकारा पाने के लिए किसान वैसिलस यूरिनजिएन्सिस की एक ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. इसके अलावा आप इमामेक्टीन बेन्जोएट 5 प्रतिशत एसजी की 200 से 250 ग्राम मात्रा या फ्लुर्बेडियामाइड 39 या 35 प्रतिशत 100 मिली मात्रा को के लीटर पानी में घोल बनाकर भी छिड़काव कर सकते हैं.
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