भारत के लिए दलहन और तिलहन दोनों फसलें महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनका हम लोग आयात करते हैं. इसलिए इन फसलों की बुवाई के बाद उनकी देखरेख बहुत जरूरी है ताकि उनकी अच्छी पैदावार हो. मेहनत बेकार न जाए. इसलिए बुवाई के समय से ही सतर्कता बरतनी चाहिए जिससे कि फसल की बर्बादी होने से बच जाए. दलहनी एवं तिलहनी फसलों को बुआई से पूर्व 4-10 ग्राम प्रति किलोग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लेना चाहिए. ट्राइकोडर्मा एक प्रकार का जैविक रोग नियंत्रक है. इसके अतिरिक्त दलहनी फसलों को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए. यह एक जैव पौध-वृद्धिकारक है. जिससे यह पौधों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन के अवशोषण में सहायक होता है.
राइजोबियम द्वारा बीजोपचार के लिए 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग की अनुशंसा की जाती है. बीजोपचार के लिए 50 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में घोलकर, उबालकर ठंडा होने पर उसमें 250 ग्राम राइजोबियम मिला दिया जाता है. इसे बाल्टी में बीज डालकर अच्छी प्रकार से मिलायें, ताकि सभी बीजों पर कल्चर का लेप चिपक जाये. उपचारित बीजों को 4 से 5 घंटे तक छायादार जगह पर फैलाने के बाद बुआई करें.
यह जीवाणु द्वारा उत्पन्न रोग है. इसमें पौधे जब दो पत्तियों के होते हैं, तो पीले पड़कर सूखने लगते हैं. इसके प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों के चयन एवं नियमित फसलचक्र को अपनाना चाहिए, अथवा बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
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यह एक विषाणुजनित रो ग है, जो सफेद मोतियों द्वारा फैलता है. इसमें पत्तियां पीली पड़ने लग जाती हैं. यह सामान्यतः मूंग, उड़द आदि में व्यापक पैमाने पर देखा जाता है. जब किसी खेत में सफेद मक्खी दिखने लगे, तो मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 750 मि.ली./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
इस रोग में पत्तियों, फलियों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई पड़ता है. पत्तियों, फलियों एवं तनों पर पीले, गोल तथा लम्बे धब्बे पाए जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत कैराथेन अथवा 0.3 प्रतिशत सल्फेक्स का छिड़काव करना चाहिए. इनके प्रबंधन के लिए रोगरोधी किस्में लगाएं.
यह कीट फसलों की पत्तियों एवं कोमल तनों का रस चूसता है, जिससे पौधा कमजोर होकर सूखने लगता है. इसके साथ ही यह विषाणु वाहक कीट भी है. इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 750 मि. ली./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
कीट के पिल्लू फसल की पुष्प कलियों के अंदर रहते हुये आंतरिक भाग को नुकसान पहुंचाते हैं. इस कारण कीट ग्रसित कलियों से फूल नहीं खिल पाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर/हेक्टेयर की दर से मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए.
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