देश के कई हिस्सों में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. मॉनसून का मौसम यानी खरीफ का सीजन, वह समय होता है जब किसानों प्रमुख तिलहन फसल, सोयाबीन की बुवाई भी करते हैं. कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय पर सावधानी बरती जाए तो सोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है. भारत में सोयाबीन का प्रमुख उत्पादन क्षेत्र मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं. इन राज्यों में मॉनसून की पहली बारिश के साथ ही यह फसल बोई जाती है. इस साल मौसम विभाग ने सामान्य से बेहतर वर्षा की संभावना जताई है, जिससे किसानों में उम्मीदें बढ़ गई हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के विशेषज्ञों का कहना है कि सोयाबीन एक संवेदनशील फसल है. बुवाई के शुरुआती चरणों बेहद सावधानी बरतने की जरूरत होती है. अगर बीज की गुणवत्ता, बुवाई का समय और खेत की तैयारी ठीक हो तो किसानों को प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक उपज मिलनी संभव है. एक नजर डालिए कि सोयाबीन की फसल बोते समय किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए.
मॉनसून की पहली अच्छी बारिश (कम से कम 75-100 मिमी) होने के 8 से 10 दिन बाद बुवाई करना सही माना जाता है. बहुत पहले या बहुत देर से बुआई करने से अंकुरण और उपज पर विपरीत असर पड़ सकता है.
कृषि विभाग और रिसर्च इंस्टीट्यूट्स की तरफ से अनुशंसित किस्में जैसे JS-95-60, JS-93-05, NRC 37 (Ahilya 4), MACS 1188 आदि का प्रयोग करें. ये किस्में रोग-प्रतिरोधी हैं और अच्छी उपज देती हैं.
बुआई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा, राइजोबियम और PSB (फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया) से ट्रीटमेंट करना चाहिए. इससे फसल को रोगों से बचाव और जड़ों की बेहतर वृद्धि मिलती है.
बीजों को 3-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए. कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 5-7 सेमी रखें. इससे पौधों को पर्याप्त धूप, हवा और पोषक तत्व मिलते हैं. इसके अलावा मिट्टी जांच के अनुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा डालें. शुरुआती 30 दिनों में बहुत ज्यादा सिचाईं से बचें क्योंकि इससे जड़ सड़न की समस्या हो सकती है.
यह भी पढ़ें-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today