खरीफनामा: बीज... किसी भी फसल का बीज आधार होता है. बीज से पौधों का निर्माण होता है और निर्माण का ये क्रम फसल और उत्पादन के तौर पर एक चक्र पूरा करता है. ऐसे में किसी भी फसल की खेती के लिए स्वस्थ बीज का होना बहुत जरूरी है ताकि स्वस्थ फसल का उत्पादन हो सके. असल में रोगग्रस्त बीज बोने पर रोगाणु और कीट बीजों पर बहुत आक्रमण करते हैं. इन हालातों में किसानों को फसलोंं के इलाज पर खर्च करना पड़ता है. ऐसे में फसलों के इलाज से बेहतर बचाव को माना जाता है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो जैसे हम बीमारियों से बचाव के लिए टीका लगवाते हैं वैसे ही फसलों को कीट और रोगों से बचाने के लिए बीजों का उपचार किया जाता है. ताकि फसल पर आक्रमण करने से रोगों को रोका जा सके. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में जानते हैं कि किसान खरीफ सीजन की मुख्य फसलें धान, मक्का, ज्वार, बाजरा के बीजों का उपचार कैसे कर सकते हैं.
असल में धान, मक्का, ज्वार, बाजरा की फसलों के बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए अन्यथा इन फसलों को रोग और कीटों से नुकसान हो सकता है. साथ ही इन फसलों में कम लागत में पोषक तत्वों की उपलब्धता अच्छी हो, इसके लिए बीज उपचार जैव उर्वरक से करना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में कृषि विज्ञान केंद्र, नरकटियागंज, पश्चिमी चंपारण, बिहार के प्रमुख एवं पौध संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. आरपी सिह ने कहा कि किसानों को बुवाई से पहले मक्का, बाजरा, ज्वार के बीजों को साफ कर लेना चाहिए. ऐसा करने से आगे का उपचार करना आसान और बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि किसानों को हमेशा स्वस्थ बीज बोने चाहिए. बीजों के उपचार के लिए बुवाई से पहले किसी बाल्टी या टब में 10 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग करते हैं. नमक का घोल बनाने के लिए एक किलोग्राम सामान्य नमक 10 लीटर पानी में घोल लें और इस घोल में 15 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी तरह हिलाएं. इससे स्वस्थ और भारी बीज नीचे बैठ जाएंगे तथा थोथे एवं हल्के बीज ऊपर तैरने लगेंगे.
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उन्हाेंने कहा कि अगर किसान बाजरा की बुवाई क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में करने जा रहे हैं तो बीज को एक प्रतिशत सोडियम सल्फेट घोल में यानि 10 ग्राम सोडियम सल्फेट एक लीटर पानी के घोल बनाकर में बीजों को 12 घंटे तक भिगोकर रख दें. इसके बाद साफ पानी में धोकर छाया में सूखाने के बाद बीज को केमिकल दवा से उपचारित कर बोएं. इस प्रकार से उपचारित बीज खारी मिट्टी में बोने से अंकुरण ज्यादा अच्छा होता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने कहा कि मक्के में बीज गलन, पौध अंगमारी, तना सड़न, कंडुआ, मृदरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू), सफेद धारी, शीथ झुलसा, ब्लैक बंंडल रोग प्रकोप होता है. इन रोगों के नियंत्रण के लिए मेटालेक्जिल 8% + मैंकोजेब 64% की 2.5 ग्राम दवा से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए या बायोफंजीसाइड ट्राईकोडरमा दवा 10 ग्राम ग्राम दवा से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए. कीटों से रोकथाम के लिए लिए, पौधों को इमिडाक्लोप्रिड 70 (WS) की 5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए. मक्के में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के 200 ग्राम एजैक्टोबैक्टर पैकेट से 10 किलो बीज को उपचारित करना चाहिए. मृदा से फास्फोरस की ज्यादा उपलब्धता के लिए 200 ग्राम पीएसबी कल्चर से 10 किलो बीज को उपचारित करना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने बताया कि खरीफ की फसल ज्वार और बाजरा अरगट रोग, हरित बाली रोग (डाउनी मिलड्यू), पत्ती धब्बा रोग, चारकोल राट, कंडुआ रोग से फसल प्रभावित होती है. अगर किसानों को अपनी फसलों को इन रोगों से बचाना है तो बुवाई के समय बीजोंं का उपचार जरूर करें.उन्होंने कहा कि बाजरा और ज्वार में लगने इन रोगों से बचाव के लिए मेटालेक्जिल 8% + मैंकोजेब 64% की 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए. इन दोनों फसलों में कडुआ रोग से बचाव के लिए कार्बोक्सिन 75% पाउडर 2 ग्राम दवा से प्रति किलो बीज को उपचारित करना चाहिए. दीमक की रोकथाम 10 मिली लीटर इमीडाक्लोरोप्रिड 600 एफएसदवा प्रति किलो बीज की दर से बीजों का उपचार करें.
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने कहा की जैव उर्वरक से बीजों का उपचार करने के लिए खेतों मे कम उर्वरक देनी पड़ती है. इसलिए 200 ग्राम जैव उर्वरक जोस्पिरिलम कल्चर, 200 ग्राम पीएसबी कल्चर को 300-400 मिली लीटर पानी में अच्छी तरह मिला लें. इसे 10-12 किलो बीजों के साथ हाथ से तब तक मिलाएं, जब तक कि सभी बीजों पर समान रूप से परत न चढ़ जाएं. जैव उर्वरक से लेपित बीजों को छाया में सूखाकर तुरंत बो देना चाहिए. जैव उर्वरक से बीज उपचार करने से कम लागत में पौधों को पोषक तत्व प्रदान हो जाता है. जैव उर्वरक से बीज के अंकुरण, फूल और परिपक्वता को बढ़ाने में मदद करता है. जैव-उर्वरक उपचारित बीजों को रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के साथ नहीं मिलाना चाहिए. अगर आप बीजों को कीटनाशी फंजीसाइड से उपचारित करना है तो कीटनाशी फंजीसाइड से उपचारित 3 से 4 दिन पहले बीजों का उपचार करें, उसके बाद जैव उर्वरकों से उपचार करें.
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