Kharif Special: एक पुरानी कहावत है. जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे... इस कहावत के सीधे मायने ये हैं कि स्वस्थ बीज बोने से ही फसल स्वस्थ होगी और अधिक उपज देगी. ऐसे में बुवाई से पहले बीजों का उपचार बेहद ही जरूरी हो जाता है. असल में बुवाई से पहले अगर बीजों का उपचार किया जाए तो कीट समेत रोगों की समस्या से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है. इसके साथ ही अगर बीजों को जैव उर्वरक से उपचारित किया जाए तो मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ जाती है. किसान तक की विशेष सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में बीजों के उपचार पर पूरी रिपोर्ट...
असल में बीजों का उपचार बेहद ही जरूरी है. इसके माध्यम से किसान फसलों को रोगों से लड़ने और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. ये एक बहुत ही सरल और सस्ता उपाय है.
किसान तक से बातचीत में कृषि विज्ञान केंद्र, नरकटियागंज, पश्चिमी चंपारण, बिहार के प्रमुख एवं पौध संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. आरपी सिह ने बताया कि फसलों में अनेक रोग बीज के माध्यम से ही फैलते हैं. उन्होंने बताया कि रोग पैदा करने वाले फंगस, बैक्टीरिया और नेमाटोड बीज की सतह पर, बीज के अंदर या बीज के साथ मिले रहते हैं. बीज बोने के बाद यह रोगाणु अपनी अनुकूल परिस्थितियों को पाकर फसल की किसी भी अवस्था पर आक्रमण कर बीमारी फैला देते हैं, जिससे फसल को काफी नुकसान होता है.
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इसके अलावा कीट के अंडे और लार्वा मिट्टी में पड़े रहते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर इन कीट रोगों की रोकथाम के लिए बीज उपचार करना जरूरी है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले बीज को बोने से पहले साफ कर लेना चाहिए, ऐसा करने से आगे का उपचार करना आसान और बेहतर होता है.
पौध संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. आर. पी. सिंह ने कहा कि किसी भी फसल का बीजोपचार केमिकल कीटनाशकों, फंजीसाइड और जैव उर्वरकों से करना हो तो आईएफआर नियम का पालन करना चाहिए.इस नियम तहत बीज का सबसे पहले फंजीसाइड उपचार करना चाहिए इसके बाद इंसेक्टिसाइड (कीटनाशी) और अंत में राइजोबियम कल्चर (जैव उर्वरक ) का प्रयोग करना चाहिए,उन्होंने कहा कि अगर बीजों को पहले जैव उर्वरकों से और फिर केमिकल फंजीसाइड और कीटनाशी से उपचारित किया जाता है तो जैव उर्वरक की गुणवत्ता घट जाती है.अगर केवल बीजों को कीटनाशी और फंजीसाइड से उपचारित करना है, तो पहले बीजों को फंजीसाइड और फिर कीटनाशी से उपचारित करना चाहिए, इस नियम से किसानों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने कहा कि अगर बीज को केमिकल कीटनाशी, फंजीसाइड और बायो फर्टिलाइजर से उपचार करना हो तो चार दिन पहले केमिकल दवाओं से बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए. फिर जिस दिन बीज बोना हो तो उस दिन 2 से 3 घंटे पहले जैव उर्वरको से उपचारित करके उन्हें छाया में रखना चाहिए. फिर बुवाई करनी चाहिए. अगर केवल केमिकल कीटनाशी फंजीसाइड से उपचारित करना है तो बीज बोने से 20 से 25 मिनट पहले बीजों को उपचारित कर बीजों को बुवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा ये ही वैज्ञानिक तरीका है.
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने कहा कि धान का बीज उपचार करने के लिए सबसे पहले पानी में नमक का दो प्रतिशत घोल तैयार करें, इसके लिए एक लीटर पानी में 20 ग्राम नमक अच्छी तरह मिला लें. इनमें बुवाई के लिए प्रयोग होने वाले बीज डालकर चलाएं, जिससे हल्के और रोगग्रस्त बीज इस घोल की ऊपरी सतह पर तैरने लगेंगे. इन्हें छानकर अलग कर लें और नीचे के बीजों को साफ पानी से धोकर सुखा लें.
किसान तक से बातचीत में डॉ सिंह ने कहा कि धान में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के लिए जैव उर्वरक एजैक्टोबैक्टर 6 ग्राम दवा को प्रति किलो बीज, फास्फोरस अधिक उपलब्धता के लिए जैव उर्वरक फास्फोबैक्टर 7.5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए, बीजों को उपचारित कर जूट के बैग के उपर रखकर छाया में रख देना चाहिए. ध्यान रहे कि एजैक्टोबैक्टर कल्चर से उपचारित करने से 3 से 4 दिन पहले ही फंजीसाइड से बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए .
किसान तक से बातचीत में डॉ आरपी सिंह ने कहा कि खरीफ की मुख्य फसल धान में फफूद जनित रोग ब्लास्ट, झुलसा,पत्ता धब्बा रोग और चुर्ण आसिता रोग लगते हैं. इससे बचाव के लिए ट्राईसाईक्लोजोल 75% की एक ग्राम दवा प्रति किलो बीज दर के हिसाब से उपचारित करना चाहिए या कर्बेडाजिम 2 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए या जैव फंजीसाइड दवा से ट्राईकोडरमा 7.5 ग्राम दवा को प्रति किलो बीज को बीज उपचारित करना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ आरपी सिंह ने बताया कि धान में जीवाणु झुलसा रोग की रोकथाम के लिए-स्ट्रेपटोसाईक्लीन 4 ग्राम को 40 लीटर पानी के घोल में 25 किग्रा बीज को उपचारित करना चाहिए या प्लांटोमाईसिन 40 ग्राम दवा को 40 लीटर पानी मे घोल बनाकर 25 किलो बीज को उपचारित करना चाहिए. पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ सिंह ने कहा कि बीज उपचार रोग बीमारी से बचाव के साथ साथ बीजों का अंकुरण के समय बीज मृदा जनित रोगों से भी सुरक्षा होती है. इसके अलावा अंकुरण प्रतिशत बढ़ जाता है.
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