भारत में डीएपी समेत अन्य कुछ रासायनिक खादों का बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है. ऐसे में जब भी नई फसल की बुवाई का समय आता है तो अचानक खाद की मांग बढ़ती है. अक्सर यह देखा गया है कि सीजन शुरू होते ही खाद की किल्लत शुरू हो जाती है, जिससे किसानों को निजी डीलरों से या कालाबाजारी में बेची जा रही खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इस बार भी कई राज्यों में यह समस्या देखने को मिली.
इसी क्रम में अभी रबी फसलों गेहूं, सरसों और चना की बुवाई जारी है, लेकिन किसान काफी समय से इस फसल में इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का शॉर्टेज बरकरार है.
अब सरकार ने अक्टूबर में खाद के आयात को लेकर आंकड़े जारी किए हैं. ‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2024 में 8.17 लाख टन (एलटी) डीएपी आयात किया गया. पिछले साल इसी अवधि में 5.15 लाख टन डीएपी आयात किया गया था यानी इस साल आयात में 58.6 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. लेकिन आयात में बढ़ोतरी के बाद भी इतना डीएपी महीने की डिमांड को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. महीने की अनुमानित मांग 18.69 लाख टन है.
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नए जारी आंकड़ों में जानकारी निकलकर सामने आई है कि पिछले महीने 11.48 लाख टन डीएपी की बिक्री हुई जबकि पिछले साल इसी महीने में 13.64 लाख टन बिक्री हुई थी. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सरसों की खेती में डीएपी की जगह सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन गेहूं के मामले में कोई दूसरा विकल्प नहीं है. डीएपी की कमी के कारण किसान ज्यादा कीमत चुकाकर बाहर से या ब्लैक में खाद खरीद रहे हैं.
इससे पहले 30 अक्टूबर को सरकार ने पंजाब में डीएपी की कमी पर कहा था कि मीडिया में चल रही रिपोर्टों गलत और तथ्यहीन है. बयान में कहा गया था कि रेड सी संकट के कारण डीएपी के आयात पर असर पड़ा है. यह समस्या जनवरी से ही जारी है. मालूम हो कि सरकार 50 किलोग्राम का डीएपी बैग 1,350 रुपये कीमत पर किसानों को दे रही है.
वहीं, कमी के कारण किसानों को महंगे दाम पर खाद खरीदनी पड़ रही है. इस कमी के कारण कई राज्यों में एनपीके, एसएसपी आदि खादों की बिक्री भी बढ़ी है. वहीं, केंद्रीय कृषि मंत्रालय इस रबी सीजन से साप्ताहिक बुवाई का अपडेट देना बंद कर सकता है. इस मामले पर विचार किया जा रहा है. इसमें अंतिम निर्णय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान लेंगे.
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