खेती-किसानी के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले हरियाणा के सिरसा जिले में किसान अचानक आपस में हाथापाई करने लगे. हालात इतने खराब हो गए कि पुलिस बुलानी पड़ी. हैरानी की बात यह है कि इस हाथापाई की वजह रासायनिक खाद बनी. यहां से पिछले साल जैसी ही तस्वीरें आने लगी हैं जब किसान लाइन में लगकर खाद खरीदने के लिए मजबूर था. इस साल भी हरियाणा से उर्वरकों की कमी को लेकर खबरें आने लगी हैं. यहां पर मॉनसून में बोई गई कपास की फसल के मौसम के जोर पकड़ने लगी है. लेकिन दूसरी ओर डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट) उर्वरक की भारी कमी ने सिरसा जिले को बड़े कृषि संकट की तरफ धकेल दिया है.
बड़े व्यापारियों की तरफ से जमाखोरी के नए आरोपों ने इस स्थिति को और मुश्किल बना दिया है. ट्रेडर्स पर आरोप है कि वो गोदामों में उर्वरक जमा कर रहे हैं और फिर उसे ऊंची कीमतों पर बेच रहे हैं. आरोप है कि खाद की कालाबाजारी हो रही है. बहरहाल, सरकारी दावों के बावजूद किसान परेशान हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें.
अखबार ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार सोमवार को सिरसा के जनता भवन रोड स्थित उर्वरक वितरण केंद्र पर उस समय तनाव चरम पर पहुंच गया जब हताश किसानों की लंबी कतारें के बीच ही अफरा-तफरी मची और नौबत हाथापाई तक पहुंच गई. व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी और आखिरकार उनकी निगरानी में उर्वरक वितरित किया गया. जिले भर के कई अन्य वितरण केंद्रों से भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली. एक स्थानीय किसान ने कहा, 'किसानों को हाशिये पर धकेला जा रहा है. हम घंटों, कभी-कभी तो कई दिनों तक कतारों में खड़े रहते हैं और फिर भी खाली हाथ लौटते हैं. इस बीच, बड़े व्यापारी गोदामों में उर्वरक जमा कर रहे हैं और बाद में उसे ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं. यह दिनदहाड़े लूट है.'
गुड़िया खेड़ा गांव के बिक्री केंद्र पर, सिर्फ 250 बोरी डीएपी उपलब्ध थी जो कि मांग से काफी कम थी. किसानों को दो-दो बोरी तक सीमित रखा गया था फिर भी कई किसान खाली हाथ घर लौट गए. अपनी बारी का इंतजार कर रहे लोगों में गुस्सा भड़कने के साथ ही हाथापाई भी हुई. कुछ वीडियो भी इस जगह से आ रहे हैं जिसमें किसानों को आरोप लगाते हुए सुना जा सकता है कि दिन में जल्दी रजिस्ट्रेशन के बावजूद उन्हें नजरअंदाज किया गया. कुछ ने दावा किया कि बिना टोकन वाले लोगों को उर्वरक दिया जा रहा था. इससे वितरण प्रक्रिया में हेराफेरी या पक्षपात का संकेत मिलता है.
हाल ही में हुई मॉनसून की बारिश के चलते यह संकट और बढ़ गया है. इस संकट की वजह से बुवाई के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. शुरुआती फसल वृद्धि के लिए जरूरी डीएपी की खासतौर पर ज्यादा मांग रहती है. कई किसानों ने कहा कि उनके पास निजी विक्रेताओं से आधिकारिक दर से दोगुनी कीमत पर उर्वरक खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
वहीं सिरसा के इफको जिला प्रबंधक साहिल के हवाले से अखबार ने जानकारी दी है कि डीएपी की उनकी आखिरी बड़ी खेप अप्रैल में आई थी. उन्होंने कहा कि तब से उन्हें कोई डीएपी नहीं मिला है. सरकार से और सप्लाई का अनुरोध किया गया है लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं आया है. अन्य सरकारी और सहकारी एजेंसियां भी मांग-आपूर्ति के अंतर को पाटने के लिए संघर्ष कर रही हैं. हालांकि, यह कमी अभी भी जारी है.
गुड़िया खेड़ा के सरपंच प्रतिनिधि आत्मा राम भाटिया ने स्थिति से निपटने के प्रशासन के तरीके की आलोचना की. उन्होंने कहा कि यह कमी कोई नई बात नहीं है. यह हफ्तों से चल रही है. कृषि विभाग आपूर्ति को सुव्यवस्थित करने में विफल रहा है और किसान परेशान हैं. अशांति और बढ़ती शिकायतों को देखते हुए, सिरसा जिला प्रशासन ने मंगलवार को एक बयान जारी कर जमाखोरी और अवैध बिक्री के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा किया. साथ ही, चेतावनी दी कि दोषी डीलरों के लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं और जुर्माना लगाया जा सकता है.
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