पूरे उत्तर भारत में अभी पाले का असर देखा जा रहा है. पाले से सबसे अधिक नुकसान सब्जियों की फसलों का होता है. साथ ही इससे सब्जियों की नर्सरी भी बेहद प्रभावित होती है. कह सकते हैं कि पाले से कई रबी फसलें एक साथ प्रभावित होती हैं जिनमें सरसों भी एक है. इससे बचाव के लिए कृषि वैज्ञानिकों की ओर से समय-समय पर सलाह दी जाती है. किसानों को दवा और खादों के छिड़काव की जानकारी दी जाती है.
इसी एक जरूरी सलाह ये है कि जिस दिन पाला पड़ने की संभावना हो तब 400 मिलीलीटर सल्फर अर्थात गंधक को 400 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करें. इसके साथ अगर नैनो यूरिया की 5-6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से इसी सल्फर वाली घोल के साथ छिड़काव करें तो फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
इसमें ध्यान रखना है कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह से गिरनी चाहिए. आपको बता दें कि इस छिड़काव का असर दो हफ्ते तक रहता है. अगर इस अवधि के बाद भी यानी 15 दिन बाद भी शीतलहर और पाले की संभावना बनी रहती है तो सल्फर अर्थात गंधक घोल को 15-15 दिन के अंतर से दोहराते रहें. अगर किसी किसान ने पछेती किस्म की गेहूं प्रजाति लगाई है और पहली सिंचाई का समय आ गया है तो 20-25 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से सल्फर 90% डब्ल्यूडीजी पाउडर को दानेदार यूरिया के साथ मिला दें. साथ में जिंक 33% पाउडर 5 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से उसी यूरिया के साथ 1 एकड़ में छीटें और उसके बाद सिंचाई करें.
जिन किसानों को गेहूं या अन्य फसलों पर नैनो यूरिया के साथ छिड़काव करना है तो सल्फर और जिंका की मात्रा वही रहेगी. लेकिन अगर ड्रोन से छिड़काव करते हैं तो पानी की मात्रा में बदलाव करना होगा. ड्रोन से छिड़काव के लिए पानी की मात्रा 10 लीटर रखें और ऊपर बताई गई खादों का स्प्रे करें. फसलों को बचाने के लिए खेती की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थानों पर हवा रोकने के लिए सपोर्ट लगाएं. इसके लिए वैसी फसलें लगा सकते हैं जो हवा को रोकने का काम करती हैं.
रबी की फसलों को शीतलहर और पाले से काफी नुकसान होता है. जब तापमान 5-7 डिग्री सेग्रे. से कम होने लगता है तब पाला पड़ने की पूरी संभावना होती है. हवा का तापमान जल जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए, दोपहर बाद हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे और उस दिन आधी रात से ही हवा रुक जाए तो पाला पड़ने की संभावना रहती है.
रात को खासकर तीसरे और चौथे पहर में पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. तापमान चाहे कितना भी नीचे चला जाए, यदि शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो फसलों को कोई नुकसान नहीं होता है. लेकिन इसी बीच हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में फसल में हल्की सिंचाई करें जिससे तापमान 0 डिग्री से नीचे नहीं गिरेगा और फसल को कोई नुकसान नहीं होगा. सिंचाई करने से 2-5 डिग्री तक तापमान बढ़ जाता है.
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