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मार्केट में आया पल्स बूस्टर, अब कम मेहनत में बढ़ जाएगी दालों की पैदावार

मार्केट में आया पल्स बूस्टर, अब कम मेहनत में बढ़ जाएगी दालों की पैदावार

देश में दाल की उपज को बढ़ाने के लिए किसान और सरकार कई प्रयास कर रहे हैं. इसी बीच भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मार्केट में एक नया पल्स बूस्टर उतारा है. इसके इस्तेमाल से किसान दहलन फसलों की पैदावार बढ़ा सकते हैं. साथ ही इसकी खेती में किसानों को कम मेहनत करनी होगी.

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देश में दालों की खपत के मुकाबले उसका उत्पादन पिछले कई दशक से कम होता जा रहा है. ऐसे में दलहनी फसलों को बढ़ावा देने और दाल उत्पादन को बढ़ाने को लेकर पिछले कई सालों से किसानों और वैज्ञानिकों की ओर से प्रयास चल रहे हैं. लेकिन जानकारी के अभाव में इसका उल्टा असर हो रहा है. दलहनी फसलों से अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे दलहनी फसलों पर संकट गहराता जा रहा है. ऐसी ही समस्याओं के निजात के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मार्केट में एक पल्स बूस्टर उतारा है. खेती में इसका इस्तेमाल करने से किसानों को कम मेहनत में भी अधिक पैदावार मिलेगी. आइए जानते हैं कैसे?.

बूस्टर से बढ़ा सकते हैं उपज

दलहनी फसलों में पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने और रोगों को रोकने के किसान पल्स बूस्टर का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये पल्स बूस्टर ट्राइकोडर्मा एफ्रोहार्ज़ियानम (IIPRTh-33) है. इसका उपयोग करके किसान दाल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं. यह बूस्टर 18 महीने तक चल सकता है यानी इसका इस्तेमाल डेढ़ सालों तक कर सकते हैं. बुवाई से पहले इससे दाल के बीज का उपचार करना होता है. इसके लिए खुराक 10 ग्राम प्रति किलो बीज लिया जाता है. यह बूस्टर फसल के दाने और चमक को बढ़ाने में मदद करता है. इससे दाने बड़े होते हैं, साथ ही यह जड़ों के विकास में मदद करता है. इसके अलावा मिट्टी को लाभ होता है.

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कैसे करें इसका इस्तेमाल

दाल की फसलों में पल्स बूस्टर छिड़काव 10 मिली प्रति लीटर की दर से करना चाहिए. इसका पहला छिड़काव रोपाई के 30 दिन बाद, दूसरा छिड़काव 60 दिन के अंतराल पर और तीसरा छिड़काव रोपाई के 90 दिन बाद करना चाहिए. इसके इस्तेमाल से किसान दहलन फसलों की पैदावार बढ़ा सकते हैं. साथ ही इसकी खेती में किसानों को कम मेहनत करनी होगी. 

पैदावार बढ़ाने के अन्य उपाय

  • दालों के ऐसे बीजों को बढ़ावा दिया जाए जिससे ज्यादा पैदावार हो.
  • कृषि विज्ञान केंद्रों की मदद से दाल के किसानों को आधुनिक तकनीकी की प्रेक्टिस कराई जाए.
  • बंजर या खराब पड़ी भूमि को दाल उत्पादन के लिए तैयार करके उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.
  • कृषि यंत्रों का विकास और बदलाव हो, ऐप आधारित गतिविधियां भी बढ़नी चाहिए.
  • कम समय में रोग प्रतिरोधी किस्मों के कीटों का प्रभाव रोकने के उपाय किए जाएं.