मूंगफली को तिलहनी फसल की सूची में रखा गया है. मूंगफली के दाने और उनसे निकलने वाले तेल दोनों की बाजार में काफी मांग है. मूंगफली के तेल का इस्तेमाल लोग खाना बनाने और खाने में करते हैं. वैसे तो इसकी खेती पूरे देश में की जाती है, लेकिन कुछ राज्यों में मूंगफली की खेती मुख्य रूप से जैसे गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में की जाती है. जून में बुआई के बाद इसकी कटाई अक्टूबर तक की जाती है. मूंगफली की बुआई वर्षा आने से पहले ही कर देनी चाहिए, क्योंकि प्रारम्भिक वर्षा सारा खेल बिगाड़ सकती है. यदि बीज ठीक से अंकुरित होने से पहले बारिश के संपर्क में आ जाते हैं, तो फलियाँ सूखने की समस्या होती है. इससे उत्पादन प्रभावित होगा.
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिए उर्वरकों का प्रयोग बहुत जरूरी है. यदि राई और मटर की खेती के बाद ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती की जा रही है तो बुआई से पहले 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालनी चाहिए. राई और मटर की खेती के बाद मूंगफली की खेती आसानी से की जा सकती है. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फॉस्फेट, 45 कि.ग्रा. पोटाश एवं 300 कि.ग्रा. जिप्सम प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए. ग्रीष्मकालीन मूंगफली में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा न डालें नहीं तो मूंगफली की पकने की अवधि बढ़ जाएगी. बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा बीज से लगभग 2-3 सेमी. दूर कूंडों में डालनी चाहिए. जिप्सम और नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा मूंगफली में फूल आने और ठूंठ बनने के समय शीर्ष ड्रेसिंग करके देनी चाहिए. जिप्सम की टॉप ड्रेसिंग के बाद 4 किग्रा. को खुरपी से गुड़ाई करके खेत में मिलाना आवश्यक है.
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जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा नहीं है उन्हें ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती नहीं करनी चाहिए. पलेवा देकर बुआई करने पर पहली सिंचाई, बुवाई के बाद और सूखी निराई-गुड़ाई के 20 दिन बाद करनी चाहिए. ग्रीष्मकालीन मूंगफली की किस्मों में 30-35 दिन बाद फूल आना शुरू हो जाते हैं, इसलिए दूसरी सिंचाई कटाई के 35 दिन बाद करनी चाहिए. 45-50 दिनों के बाद खूंटा बनना शुरू हो जाता है. इस अवस्था में नमी की उचित व्यवस्था के लिए 50-55 दिन बाद तीसरी सिंचाई करनी चाहिए. तीसरी सिंचाई गहरी करना उचित रहेगा क्योंकि इस समय खूंटी मिट्टी में गड़ने लगती है और फल बनने लगते हैं. चौथी सिंचाई 70-75 दिन बाद फलियों में दाने भरते समय करनी चाहिए. फिर भरपूर उपज प्राप्त करने के लिए 4-5 सिंचाईयां करनी चाहिए.
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एक समय पर मूंगफली के पत्ते चमड़े की तरह दिखने लगते हैं. कमी के लक्षण नई पत्तियों पर अधिक स्पष्ट होते हैं. जिससे पत्तियों को चमड़े जैसी बनावट मिल जाती है. आइए जानते हैं इसके क्या कारण हैं और इसे कैसे रोकें. पत्तियों की चमड़े जैसी बनावट पोषण की कमी के कारण होती है. इस कमी को दूर करने के लिए पौधों के पोषण का ध्यान रखना जरूरी है. इसके लिए आप बेसल खुराक के रूप में 50 किलोग्राम P2O5 का उपयोग करें. फास्फोरस की कमी के तत्काल प्रबंधन के लिए कमी की गंभीरता के आधार पर सिंगल सुपरफॉस्फेट जैसे पानी में घुलनशील उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए. अम्लीय मिट्टी में रॉक फॉस्फेट का प्रयोग लाभकारी होता है. तत्काल प्रभाव के लिए पत्तियों पर 2% डीएपी का छिड़काव करें.
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