ऊसर भूमि(Barren land ) को खेती के लिए बेकार समझा जाता है.वहीं ऊसर सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में लवणीय भूमि को सामान्य भूमि में बदलने का प्रयास जारी है. वहीं कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा ऊसर जमीन में फसल के माध्यम से पैदावार के लिए भी शोध कार्य किए जा रहे हैं. केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा ऊसर भूमि में खेती के लिए ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है जिसकी मदद से किसान के लिए यह जमीन अब बेकार नहीं बल्कि फायदे का सौदा साबित होगी. उत्तर प्रदेश में स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में धान की चार ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है जो ऊसर भूमि में भी पैदावार दे सकती हैं. ऐसी ही एक किस्म है सीएसआर-43. धान की इस किस्म के जरिए किसान को ऊसर भूमि में भी भरपूर पैदावार मिलती है.
केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के सहयोग से उत्तर प्रदेश की 8 लाख हेक्टेयर भूमि को ऊसर मुक्त किया जा चुका है. जिप्सम के माध्यम से जमीन की ऊपर की 30 सेंटीमीटर भूमि ही उपजाऊ हो पाती है जबकि नीचे की भूमि में लवणता बनी रहती है जिसके चलते पौधों की जड़ों में वृद्धि नहीं हो पाती है. ऐसे में किसान उन्नत तरीकों के माध्यम से खेत को उपजाऊ बनाया जा सकता है. केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा धान की एक ऐसी किस्म सीएसआर-43 को विकसित किया गया है. धान की यह किस्म का पौधा 9.5 पीएच भूमि भूमि में भी पैदावार दे सकता है. धान की इस किस्म के पौधे की लंबाई 100 सेंटीमीटर तक होती है. वही यह किस्म 110 दिन में तैयार हो जाती है जो दूसरी किस्मों से 20 दिन पहले ही तैयार हो जाती है. धान की इस किस्म से उसर भूमि में 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है जबकि सामान्य भूमि में 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है. धान की किस्म बारीक चावल वाली किस्म है.
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केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक रवि किरन ने किसान तक को बताया की खरीफ सीजन में धान की बुवाई करने से पहले मई-जून के महीने में हरी खाद के लिए ढैचा की बुआई कर खेत में जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए. ढैचा के पौधे जैविक खाद के साथ-साथ मिट्टी की छवि क्षारीयता को भी कम करते हैं. वही इससे जमीन उपजाऊ होती है. वही आजकल किसान गेहूं की कटाई करने के बाद अवशेष को खेत में ही जला देते हैं जबकि ऐसा करने से मृदा में मौजूद कार्बन और जीवाणुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और खेत की मृदा स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है. फसल अवशेष को खेत में ही जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए.
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