मौसम के अनिश्चित व्यवहार के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, जिसका सीधा प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ रहा है. खासकर सब्जी उत्पादक किसान लगातार अपनी फसलों को मौसम की मार से बचाने का प्रयास कर रहे हैं. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों को रासायनिक उर्वरकों की बजाय जैविक उर्वरकों का उपयोग बढ़ाना चाहिए.
भोजपुरी कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. प्रवीण कुमार द्विवेदी का कहना है कि अधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी कठोर हो रही है, जिससे पौधों की जड़ें सही तरीके से विकसित नहीं हो पा रही हैं. इसका परिणाम यह होता है कि फसलों को उचित पोषण नहीं मिल पाता. इस समस्या का समाधान जैविक खादों के माध्यम से किया जा सकता है, जो न केवल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हैं, बल्कि फसलों को भी अधिक मजबूत बनाते हैं.
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कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार द्विवेदी का कहना है कि तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण पौधों में तनाव बढ़ जाता है. रासायनिक खाद के अधिक उपयोग से पौधों की कोशिका घनत्व कम हो जाती है, जिससे वे कमजोर होकर जल्दी सूखने लगते हैं और बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. वहीं, जैविक खेती में पौधों का विकास संतुलित रूप से होता है, जिससे वे मौसम की मार को सहन करने में सक्षम होते हैं.
पिछले पांच वर्षों से जैविक खेती कर रहे किसान उपेंद्र सिंह का कहना है कि मार्च में मौसम में उतार-चढ़ाव के बावजूद उनकी सब्जी की फसल अच्छी स्थिति में है. दूसरी ओर, जिन किसानों ने रासायनिक खादों का अधिक उपयोग किया है, उनकी फसलें प्रभावित हुई हैं, जिससे सिंचाई और कीटनाशकों पर खर्च बढ़ गया है. हालांकि जैविक खेती में उत्पादन थोड़ा कम हो सकता है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है और लागत भी नियंत्रित रहती है.
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कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है कि जो किसान अभी भी रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें जैविक खादों को भी अपनाना चाहिए. जैविक खेती में पुआल, वर्मी कम्पोस्ट, गोबर, प्राकृतिक घटक, वेस्ट डीकंपोज़र और तरल उर्वरकों का उपयोग करना लाभकारी साबित हो सकता है.
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