केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद नैनो यूरिया और नैनो डीएपी खाद किसानों का पहली पसंद नहीं बन पा रही है. किसान अभी भी नैनो लिक्विट के मुकाबले पारंपरिक दानेदार सारायनिक खाद ही पसंद कर रहे हैं. खास कर पंजाब-हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य में किसान नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को संदेह के साथ देख रहे हैं. उन्हें अभी तक इसकी उर्वरता के ऊपर विश्वास नहीं है. वे खेतों में दानेदार यूरिया और डीएपी खाद का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, यमुनानगर (हरियाणा) में इफको के एक डीलर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि किसान नैनो यूरिया या नैनो डीएपी नहीं खरीदते हैं, क्योंकि वे पारंपरिक बैग खरीदना पसंद करते हैं. उन्हें लगता है कि बैग वाली खाद अधिक शक्तिशाली है. हमें किसानों से इसे बेचने के लिए अनुरोध करना पड़ता है. हालांकि, किसान और विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं हैं. करनाल के घरौंदा के किसान संदीप त्यागी ने कहा कि 500 मिली लीटर की बोतल 50 किलो के बैग जितनी शक्तिशाली कैसे हो सकती है? सरकार किसानों को गुमराह कर रही है. इसने पहले ही 50 किलो के बैग का वजन घटाकर 45 किलो कर दिया है और अब यह उर्वरकों की उपलब्धता को सीमित करना चाहती है.
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लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष (मृदा) डॉ. धनविंदर सिंह ने दो साल का फील्ड प्रयोग किया और निष्कर्ष निकाला कि नैनो यूरिया की 500 मिली लीटर की स्प्रे बोतल मिट्टी में नाइट्रोजन के 50 प्रतिशत उपयोग का विकल्प नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि गेहूं और चावल के दानों में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और मिट्टी में 50 प्रतिशत नाइट्रोजन के उपयोग के बजाय नैनो यूरिया का उपयोग करने से जड़ों का बायोमास कम हो जाएगा, जिससे अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाएगा. वहीं, नैनो यूरिया के समान दर पर साधारण यूरिया का छिड़काव करने पर भी समान परिणाम मिले, जो साधारण यूरिया की तुलना में नैनो यूरिया के किसी विशेष लाभ को दर्शाता है. इसके अलावा, कम नाइट्रोजन सामग्री वाले भूसे को मिट्टी में मिलाने पर सड़ने में अधिक समय लगेगा.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक वीरेंद्र सिंह लाठर ने कहा कि भारत सरकार ने अपने आयात बिल को कम करने और कृषि सब्सिडी में कमी की डब्ल्यूटीओ शर्तों को पूरा करने के लिए नैनो यूरिया को पूरक उर्वरक के रूप में बढ़ावा दिया. नैनो यूरिया छद्म विज्ञान का एक ज्वलंत उदाहरण है और किसानों का शोषण करने का एक साधन है. आधिकारिक डेटा पारंपरिक उर्वरकों के लिए निरंतर वरीयता का समर्थन करता है. चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों में फरवरी तक प्रमुख उर्वरकों की बिक्री 3 प्रतिशत बढ़कर 57.57 मिलियन टन (एमटी) हो गई, जो मुख्य रूप से डीएपी और जटिल उर्वरकों के अधिक उपयोग से प्रेरित थी, जबकि यूरिया की खपत स्थिर रही.
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दरअसल, भारतीय किसान एवं उर्वरक सहकारी (इफको) नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को लॉन्च किया है. इसके इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए वह जोरदार प्रचार कर रहा है. साथ ही उसने अभी तक नैनो यूरिया की 7.5 करोड़ बोतलें और नैनो डीएपी की 45 लाख बोतलें बेचने का दावा किया है.
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