कृषि के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन और किसानों को इससे होने वाले फायदे के लिए किसानों का खेती में उर्वरकों के इस्तेमाल के प्रति रुझान काफी तेजी से बढ़ रहा है. जिससे प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की उत्पादन क्षमता भी खराब हो रही है. ऐसी ही समस्याओं को खत्म करने के लिए उर्वरकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए नैनो तकनीक को विकसित किया जा रहा है. इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर के द्वारा 5 फसलों पर IFFCO नैनो यूरिया डीएपी का प्रयोग किया गया है. जिसके परिणाम अच्छे सामने आए हैं.
असल में IFFCO ने कुछ साल नैनों यूरिया लांच किया था. जिसे किसान बहुत ज्यादा पसंद कर रहे हैं. वहीं इसके प्रयोग से कृषि क्षेत्र के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. वहीं इसको लेकर अभी भी कई किसानें के मन में भ्रम है. इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र कटिया, सीतापुर की तरफ से ये ट्रायल किया गया था.आइये जानते हैं कि पूरा मामला क्या है.
यह फर्टिलाइजर नैनो यूरिया की तरह ही होता है. यह एक लिक्विड वर्जन है. किसान अब इसके 500 ml की बोतल का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. यह एक फॉस्फेटिक रासायनिक खाद है. जो फसलों में पोषण और इसके अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूरा करता है. इसमें 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है. वहीं इस उर्वरक से किसानों के उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
नैनो डीएपी उर्वरक को आधिकारिक तौर सफल होने से पहले कई कृषि विज्ञान संस्थानों में इसका ट्रायल किया जा रहा है. वहीं इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र कटिया, सीतापुर में भी नैनो डीएपी का ट्रायल किया जा रहा है. रबी सीजन की पांच फसलों, गेहूं, सरसों, मटर, मसूर, चना पर इस डीएपी का छिड़काव करके ट्रायल किया जा रहा है. वहीं यहां के प्रभारी अध्यक्ष, डॉ. डीएस श्रीवास्तव ने चना पर नैनों डीएपी के शुरुआती ट्रायल का परिणाम प्रस्तुत किया है.
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उन्होंने बताया कि चना की जिस पौधे पर नैनो डीएपी फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया था. उसकी जड़ों में कांटोंं की संख्या अधिक थी, जो जड़ों के भोजन का निर्माण का काम करते हैं. वहीं जिस फसल में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. उन पौधों की जड़ों में विकास नहीं हो रहा है और उन पौधों में नाइट्रोजन लेने की भी क्षमता कम रही. जिससे जड़े छोटी रह गईं.
डॉ. डीएस श्रीवास्तव ने इस फर्टिलाइजर का बताते हुए कहा कि जब हम किसी भी फसल पर नैनो डीएपी से ट्रीटमेंट और छिड़काव करते हैं. तो ये हमारे उत्पादन और जड़ों की ग्रोथ पर भी काफी अच्छा असर पड़ता है. उन्होंने बताया कि इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए इसका परीक्षण किया जा रहा है और किसानों के भ्रम जो मानते हैं कि फसल का नुकसान न हो ऐसे ही भ्रम को दूर करने के लिए इसका ट्रायल किया जा रहा है.
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