तमिलनाडु के चाय बागानों में पोटाश की कमी देखी जा रही है. यहां चाय की खेती करने वाले कई लोगों की शिकायत है कि उन्हें समय पर म्यूरिएट ऑफ पोटाश यानी कि MoP नहीं मिल रहा है जिससे खेती में दिक्कतें आ रही हैं. इस शिकायत का संज्ञान लेते हुए इंडियन पोटाश लिमिटेड (IPL) ने कहा है कि जल्द ही खाद की सप्लाई को सुचारू किया जाएगा. आईपीएल ने कहा है कि अगले 10 दिनों में पोटाश की सप्लाई सुधरने की उम्मीद है क्योंकि इसके लिए विदेशी कंपनियों से एग्रीमेंट हो गया है. आयात में देरी के चलते घरेलू बाजार में भी पोटाश खाद की कमी देखी जा रही है. लेकिन यह समस्या जल्द सुधर जाने की उम्मीद है. ऐसी बात आईपीएल ने कही है.
इंडियन पोटाश लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पीएस गहलोत ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, कंपनी ने दुनिया के कई वेंडर से एग्रीमेंट किया है. इसके तहत 3.4-4 मिलियन टन पोटाश के आयात का करार किया गया है. पिछले साल के आयात से इस बार की मात्रा अधिक है क्योंकि पिछले वर्ष जहां आईपीएल ने तीन मिलियन टन पोटाश का आयात किया था. इस बार वह मात्रा बढ़कर 3.5-4 मिलियन टन पर पहुंच गया है.
गहलोत कहते हैं कि इस बार पोटाश के आयात में कुछ देरी इसलिए हुई क्योंकि विदेशी वेंडर अधिक दाम मांग रहे थे. इसलिए करार फाइनल करने में अधिक समय लग गया. गहलोत के मुताबिक, एग्रीमेंट में पोटाश के दाम को घटाकर 422 डॉलर प्रति टन तक लाया गया है. जबकि विदेशी सप्लायर 700-800 डॉलर प्रति टन की मांग कर रहे थे.
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पीएस गहलोत ने माना कि देश के कुछ हिस्सों में पोटाश की कमी है जिसे अगले 10-15 दिनों में दुरुस्त कर लिया जाएगा. जैसे ही विदेशों से सप्लाई यहां पहुंचेगी, पोटाश की कमी दूर हो जाएगी. तमिलनाडु के चाय बागानों में भी पोटाश की कमी अगले 10-15 दिनों में खत्म होने की पूरी संभावना है.
खेतों में एमओपी का इस्तेमाल बाकी अन्य खादों के साथ किया जाता है. पोटाश की मांग मॉनसून शुरू होने से ठीक पहले आने लगती है जो फसल तैयार होने के पहले तक बनी रहती है. इसके अलावा और भी कई फसलें हैं जिनमें पोटाश की मांग लगातार बनी रहती है. चाय भी इसी में एक है. देश में पोटाश का आयात दो प्रमुख देश बेलारूस और कनाडा से किया जाता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि इस बार चाय के क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई है जिससे पोटाश की मांग और ज्यादा बढ़ गई है. बारिश के बाद चाय में पोटाश का छिड़काव करना होता है. चाय बागानों के किसानों का कहना है कि अभी पोटाश की कमी होती है तो चाय के उत्पादन पर घोर असर देखा जा सकता है. किसानों को हालांकि उम्मीद है कि अगले 10-15 दिनों में पोटाश की सप्लाई सुचारू हो जाएगी जिससे चाय में पोटाश की कमी दूर करने में मदद मिलेगी.
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किसानों की एक बड़ी समस्या ये भी है कि आयात किए गए पोटाश के दाम खेती और बागानी पर बुरा असर डालते हैं. देश में पहले पोटाश का भाव 18 रुपये प्रति किलो होता था जो अभी 33 रुपये तक पहुंच गया है. यानी पोटाश का दाम लगभग दोगुना हो गया है. चाय के बागानों में इस बढ़े रेट पर लोगों की चिंता भलीभांति देखी जा रही है. पोटाश की मांग बढ़ने से चाय की खेती का खर्च बढ़ रहा है, इसलिए किसान पोटाश के विकल्पों पर ध्यान दे रहे हैं. इसके लिए चाय के पौधों में खांड़, शीरा, राब, लकड़ी की राख आदि डाले जा रहे हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक, दक्षिण भारत में प्रति हेक्टेयर 500 किलो पोटाश की जरूरत होती है. इस हिसाब से हर साल वहां 54,000 टन पोटाश की खपत होती है.
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