लीची गर्मी के मौसम में तैयार होने वाला एक बढ़िया फल होता है. गर्मी के मौसम में लीची की भारी डिमांड होती है. इसकी मिठास इसका रसीलापन सभी को लुभाता है. गर्मी में आम के बाद सबसे ज्यादा लोग लीची खाना पसंद करते है. ऐसे में इसकी डिमांड अधिक बढ़ जाती है और किसानों को भी अच्छा दाम मिलता है. बिहार लीची का प्रमुख उत्पादक है. यहां बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है. लेकिन कुछ किसानों को इसकी खेती में मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है. अगर किसान सही समय पर सही खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो नुकसान हो सकता है.
अप्रैल के महीने लीची तैयार होने के बाद फट सकती है, जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे में जानिए कि लीची की खेती में किस खाद का और किस समय छिड़काव करना चाहिए जिससे अच्छा उत्पादन मिल सके. खासकर लीची न फटे. लीची की खेती किसानों के तब ज्यादा फायदेमंद होगी जब वो फटे न, क्योंकि फटने के बाद उसके खराब होने की संभावना बढ़ जाती जाती है.
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मार्च में लीची पेड़ में फल लगना प्रारम्भ हो जाता है. इस माह 450-500 ग्राम यूरिया और 250-300 ग्राम पोटाश प्रति पौध में देना चाहिए. उर्वरक देने के बाद सिंचाई सुनिश्चित करें. इसके अलावा आवश्यकता अनुसार 2 प्रतिशत यूरिया के दो छिड़काव फल की वृद्धि के दौरान उनके आकार को और बढ़ाने के लिए दिये जा सकते हैं. फलों को गिरने से बचाने के लिए मार्च माह में ही प्लेनोफिक्स (2- मि.ली. प्रति 5 लीटर) अथवा एनएए (200 मि.ग्रा. प्रति लीटर) के घोल का छिड़काव करें.
केसिलिल आसिता रोग का प्रकोप से बचना के लिए लीची में तय रसायनों का प्रयोग करें. लीची के नए बागों की सिंचाई करें. बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई का कार्य करें. फलों को फटने से बचाने के लिए अप्रैल माह में, बोरेक्स (4 ग्राम प्रति लीटर) का 15 दिनों के अंतराल पर गुठली बनने के बाद छिड़काव करें. अप्रैल में पौधों की 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए ताकि फलों में नियमित वृद्धि होती रहे. पौधों की नियमित सिंचाई की जानी चाहिए.
लीची में माईट के प्रकोप को कम करने हेतु डाइकोफॉल (18.5) ईसी 4 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी में) का छिड़काव लाभकारी रहता है. लीची के बागों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें. इसमें फलछेदक की रोकथाम हेतु फूलों के खिलने से पहले निंबीसिडीन 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. इसके अतिरिक्त, रासायनिक नियंत्रण हेतु, इमिडक्लोप्रिड 17.8 एसएल के 0.7-1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का पहला और दूसरा छिड़काव 12-15 दिनों के अंतराल पर करें.
तीसरा छिड़काव एमामेक्टिन बेंजोएट 5 प्रतिशत एसजी के 0.7 ग्राम प्रति लीटर अथवा लैम्डा साइहैलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी के 0.7 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी में घोल बनाकर करें. मार्च से जून तक नवरोपित पौधों को अत्यधिक गर्मी से बचाने हेतु पुआल अथवा घास-फूस से बने छप्परों से ढक देना चाहिए. छप्पर का मुंह पूर्व की तरफ खुला छोड़ दें.
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