मूंग की खेती गरमा फसल के तौर पर की जाती है. इसकी दाल को हरा चना भी कहा जाता है. ये भारत में एक प्रमुख दाल है, जो कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मूंग की खेती कम लागत और कम समय में खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में आसानी से की जा सकती है. ऐसे में रबी फसल की कटाई के बाद किसान अपने खाली खेतों में मूंग की खेती कर सकते हैं. मूंग की खास बात है कि यह जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे अगली फसलों से बढ़िया उत्पादन मिलता है. ऐसे में अगर आप भी मूंग की खेती करना चाहते हैं तो ये जानना जरूरी है कि इसकी उपज को कैसे बढ़ाएं. आइए जानते हैं.
मूंग की अधिक उपज पाने के लिए किसान सल्फर का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके उपयोग से मूंग में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है. साथ ही यह उत्पादन बढ़ाने का काम करता है क्योंकि अगर मूंग के पौधे में सल्फर की कमी होती है तो इसकी बढ़वार रुक जाती है. साथ ही उत्पादन में इसका असर दिखाई देता है. दरअसल सल्फर की कमी से उत्पादन कम प्राप्त होता है. साथ ही फसलों की क्वालिटी भी अच्छी नहीं होती है. इसके साथ ही फोर्टिस और टेक्नोजेड खाद मूंग की खेती के लिए बहुत जरूरी है. मूंग का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रति हेक्टेयर चार किलोग्राम टेक्नोजेड और 6 किलोग्राम फोर्टिस का इस्तेमाल करना चाहिए.
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जब मूंग की फसल 20 से 30 दिन की हो जाए तब तीन किलो फोर्टिस को खेत में डालना चाहिए. इसके बाद जब फसल 40-50 दिनों की हो जाए तब तीन किलोग्राम और फोर्टिस खेत में डालना चाहिए. जबकि टेक्नोजेड को चार किलो की दर से खेत में उस समय डालना चाहिए जब फसल 25 से 30 दिनों की हो जाए. इसके बाद फिर से दो किलो टेक्नोजेड डालना चाहिए.
आपको बता दें कि लगभग 80 प्रतिशत से ज्यादा मूंग की खेती गरमा मौसम में की जाती है. गरमा मूंग की खेती न केवल धान-गेहूं फसल चक्र के लिए फायदेमंद होती है बल्कि फसलों के उत्पादन को भी बढ़ाती है. इसके अलावा मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि करती है. वहीं मूंग की फसल अपने वृद्धि काल में सबसे ज्याद गर्मी सहन कर सकती है. किसान कम लागत में इस फसल से अधिक लाभ कमा सकते हैं. गरमा मौसम में मूंग की खेती करने के दो फायदे हैं. पहला किसान मूंग की फली की एक तोड़ाई कर उपज प्राप्त कर सकते हैं और दूसरा, फली तोड़ने के बाद इसके पौधे को मिट्टी में मिलाकर बड़ी मात्रा में हरी खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं.
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