कई बार अनियमित मॉनसून या खरीफ फसलों की जल्दी कटाई के कारण सितंबर महीने में खेत खाली रह जाते हैं. ऐसे में किसान अगली रबी फसल जैसे गेहूं की बुवाई का इंतजार करते हैं. लेकिन इस खाली समय का सही उपयोग करके किसान एक अतिरिक्त फसल ले सकते हैं और अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. इसके लिए 'तोरिया' एक बेहतरीन विकल्प है जिसे 'कैच क्रॉप' के रूप में उगाया जा सकता है. 'कैच क्रॉप' का मतलब है दो मुख्य फसलों के बीच के खाली समय में उगाई जाने वाली फसल. तोरिया की खेती 'कैच क्रॉप' के रूप में बहुत फायदेमंद है क्योंकि यह सिर्फ 80 से 90 दिनों जैसे कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को कम लागत में अतिरिक्त आय मिलती है. इसकी कटाई नवंबर के अंत तक हो जाने से किसान समय पर गेहूं या जौ जैसी अगली फसल की बुवाई कर पाते हैं और फसल की छोटी अवधि होने के कारण इस पर मौसमी जोखिम भी कम रहता है.
विशेषज्ञों के अनुसार सही किस्म का चुनाव ही अच्छी पैदावार का आधार है. भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अलग-अलग क्षेत्रों और जरूरतों के हिसाब से तोरिया की कई बेहतरीन किस्में विकसित की हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है.
PT-303: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित यह एक प्रमुख काली किस्म है, जो उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, हरियाणा और पंजाब के लिए अनुशंसित है. यह लगभग 90-95 दिनों में पकती है और इसकी औसत उपज 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.
आजाद चेतना: यह किस्म चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय (CSA), कानपुर द्वारा विकसित की गई है. यह 90 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 6 क्विंटल तक पैदावार देती है. इसमें तेल की मात्रा 42.4% होती है और इसकी कटाई के बाद गेहूं की बुवाई आसानी से की जा सकती है.
भवानी: CSA, कानपुर द्वारा ही विकसित यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो मात्र 80-85 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ है और इसमें तेल की मात्रा 39-40% तक होती है. यह तोरिया-गेहूं फसल चक्र के लिए एक आदर्श किस्म है.
तपेश्वरी: यह एक पुरानी और लोकप्रिय किस्म है जो 80 से 90 दिनों में पक जाती है. इसका उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 6 क्विंटल है और इसके बीजों में 40 से 42% तक तेल पाया जाता है.
पंत तोरिया 208: गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित यह किस्म 90 दिनों में तैयार होती है. सिंचित क्षेत्रों के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है, जिससे 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार मिलती है और इसमें तेल की मात्रा 42% होती है. अपनी मिट्टी, सिंचाई की सुविधा और फसल चक्र के अनुसार इनमें से किसी भी किस्म का चुनाव करके तोरिया की सफल खेती कर सकते हैं.
तोरिया की अच्छी पैदावार के लिए, सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें. इसके बाद, प्रति एकड़ सवा किलो (1.25 किलोग्राम) बीज का प्रयोग करते हुए, बुवाई हमेशा लाइनों में करें, जिसमें लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर और बीज की गहराई 4 से 5 सेंटीमीटर रखें. यह एक तिलहनी फसल है, इसलिए इसे सल्फर की विशेष जरूरी होता है.
बुवाई के समय प्रति एकड़ 25 किलो यूरिया, 50 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) और 10 किलो जिंक सल्फेट डालें. अगर एसएसपी की जगह डीएपी का उपयोग कर रहे हैं, तो सल्फर की पूर्ति के लिए आखिरी जुताई के समय 100 किलो जिप्सम जरूर मिलाएं. इस विधि से खरीफ और रबी के बीच खाली खेतों का सही उपयोग कर क न केवल अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि समय पर गेहूं की बुवाई भी सुनिश्चित कर सकते हैं.
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