Kharif Special: इस गर्मी खेतों में हरी खाद लगाएं क‍िसान, कम लागत में पाएं कई लाभ

Kharif Special: इस गर्मी खेतों में हरी खाद लगाएं क‍िसान, कम लागत में पाएं कई लाभ

Kharif Special: आजकल अधिकतर किसान अपने खेतों में रासायनिक खाद का ही प्रयोग करते हैं, जो खेत की सेहत के लिए सही नहीं है. दूसरी ओर किसानों को फसलों से होने वाली आय का अधिकांश हिस्सा रासायनिक उर्वरकों पर खर्च हो रहा है, इसलिए उनके लिए यह जरूरी हो गया है कि वे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करें और दूसरे विकल्प की ओर रुख करें.

Advertisement
Kharif Special: इस गर्मी खेतों में हरी खाद लगाएं क‍िसान, कम लागत में पाएं कई लाभखरीफ सीजन से पहले खेतों में हरी खाद लगाएं क‍िसान - फोटो क‍िसान तक

खेतों की उर्वरक क्षमता को बनाए रखना बेहद ही जरूरी है. मसलन, खेतों की उर्वरक क्षमता से ही फसलों का उत्पादन तय होता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए पहले किसान अपने खेतों में साल में एक बार दलहनी फसलों की खेती करते थे, लेक‍िन आजकल किसान अपने खेतों से एक साल में 3 से 4 फसल लेते हैं. ज‍िसमें बेहतर उत्पादन के ल‍िए क‍िसान अपने खेतों में रासायन‍िक खाद का प्रयोग करते हैं. इससे उत्पादन तो बेहतर होता है, लेक‍िन खेत की सेहत पर बुरा असर पड़ता है.ऐसे में किसानों के लिए यह जरूरी है क‍ि वे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करें और खाद के दूसरे व‍िकल्प का प्रयोग करें.ऐसे में क‍िसानों के सामने हरी खाद का व‍िकल्प सबसे बेहतर है.

क‍िसान हरी खाद का प्रयोग कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकते हैं. साथ ही फसलों का बेहतर उत्पादन भी प्राप्त कर सकते हैं. आइए जानते हैं क‍ि खरीफ सीजन से पहले हरी खाद खेतों और क‍िसानों के ल‍िए क‍ितनी जरूरी है.    

खरीफ की बुवाई से पहले करें हरी खाद की बुवाई 

कृषि विज्ञान केन्द्र हापुड़ के प्रमुख डॉ हंसराज सिंह कहना है कि खेती में लगातार असंतुलित खाद-फर्टिलाइजर देने के कारण  खेतों का उपजाऊपन  कम  होता जा रहा है.इसलिए जरूरी है जैविक खाद और हरी खाद का इस्तेमाल क‍िसान खेतों में ज्यादा करें.उन्होंने कहा कि गेहूं की कटाई के बाद, लगभग मई-जून के महीने में अधिकतर खेत खाली रहते हैं. इन समस्याओं से निपटने के लिए इन खाली पड़े खेतों में हरी खाद की फसलें लगाकर हरी खाद की फसल को डेढ़ से दो माह की अवस्था पर खेत में जोतकर मिला दिया जाता है. इससे खेतों को हरी खाद मिलती है, जिससे फसलों की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही हरी खाद से जैविक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होने से खेत की भौतिक दशा भी सुधरती है.

ये भी पढ़ें- Kharif Special: अच्छे बीज के साथ ही बहुत जरूरी है स्वस्थ म‍िट्टी, जांच के ल‍िए खेत से ऐसे लें नमूना

कौन सी हैं हरी खाद की फसलें ?

डॉ हंसराज सिंह ने कहा कि किसान आने वाले खरीफ सीजन के लिए अपने खेतों में हरी खाद की बुवाई कर सकते हैं. जि‍सके तहत क‍िसान खेत में हरी खाद के तौर पर सनई, ढैंचा, लोबिया, मूंग और ग्वार की बुवाई कर सकते हैं. उन्होंने बताया क‍ि ज‍िन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, उन इलाकों में सनई की बुआई की जाती है. ढैंचा को कम बारिश वाले इलाकों में उगाया जा सकता है. ग्वार को कम वर्षा वाले क्षेत्र और रेतीली मिट्टी वाले इलाकों में किया उगाया जा सकता है.जल निकासी वाली जमीन में लोबिया, मूंग और उड़द को हरी खाद के रूप उपयोग किया जा सकता है. ढैंचा हरी खाद के लिए 25 किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए 32 से 36 किलो प्रति एकड़ बीज जरूरत होती है और मिश्रित फसल में बीज 12 से 16 किलो प्रति एकड़ की जरूरत होती है. 

कैसे लगाएं हरी खाद की फसलें ?

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार खेत में हल्की सिंचाई या हल्की बारिश के बाद हरी खाद की बुवाई करनी चाहिए. हरी खाद की फसल बोने का सही समय अप्रैल से जुलाई है. बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए और बुवाई से पहले खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से नम कर लेना चाहिए. बीज बोते समय पंक्तियों के बीच की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए. बीज की गहराई 3-4 सेंटीमीटर होनी चाहिए. बीज बोने से पहले उसे एक रात के लिए पानी में भिगोकर रख दें. हरी खाद के लिए फास्फोरस 16 किग्रा प्रति एकड़ की दर से डालें इसमें नाइट्रोजन खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है. मगर फसल विकास के लिए  पहली बार प्रति एकड़ 4 से 6 किलोग्राम नाइट्रोजन का उपयोग किया जा सकता है.

हरी खाद की बुवाई में खर्च 

केवीके हापुड़ के प्रमुख डॉ. सिंह ने कहा कि जुलाई के प्रथम सप्ताह तक ढैंचा की फसल को जोतकर खेत में मिला देना चाहिए. इस समय ढैंचा की फसल करीब 40-50 दिन की होती है और इस समय फसल की लंबाई तीन फुट होती है. फिर खड़ी फसल को हैरो से बारीक काटकर मिट्टी में मिलाकर खेत में पानी देना चाहिए. पानी लगने से बहुत जल्दी सड़कर ये मिट्टी में मिल जाता है. यह मिट्टी की भौतिक संरचना यानी उपज क्षमता को बढ़ाती है. यह प्रक्रिया बहुत महंगी भी नहीं है. इसके बीज और जुताई का खर्च मिलाकर प्रति एकड़ डेढ़ हजार से ज्यादा नहीं लगता, जबकि इससे सैकड़ों क्विंटल हरी खाद मिल जाती है.

हरी खाद से मिलती है खेतों को नाइट्रोजन भरपूर

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार इस तरह ढैंचा से प्रति एकड़ से 34-42 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है. इसी तरह सनई के 35-52 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, लोबिया से 30-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, ग्वार से 27-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, मूंग से 14-20 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त किया जा सकता है. दलहनी फसलों वाली हरी खादें की जड़ों में गांठे होती है, जो मिट्टी को बांटने का काम करती है और इन गांठों में पौधे से वायुमंडल से अवशोषित नाइट्रोजन इकट्ठा होती है, जो आगामी फसल के लिए जमीन में फिक्स हो जाती है. खेत में हरी खाद पलटने के बाद जो भी फसल ली जाएगी. उसके पौधों का विकास अच्छा होगा.और उसकी गुणवत्ता अच्छी होगी. 

POST A COMMENT