राष्ट्रीय किसान प्रोग्रेसिव एसोसिएशन (RKPA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिनोद आनंद ने उन संगठनों को आड़े हाथों लिया है जो घटिया एवं नकली कीटनाशकों के स्तर को देश के पूरे कीटनाशक बाजार का मात्र 2 फीसदी होने का दावा कर रहे हैं. दिल्लीक स्थि त प्रेस क्लाब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रें स को संबोधित करते हुए आनंद ने कहा कि इस समय देश में 30 से 35 फीसदी कीटनाशक नकली बिक रहे हैं, जिससे कृषि, किसानों और इकोनॉमी को काफी नुकसान हो रहा है. ऐसे कई उदाहरण देते हुए आनंद ने कहा कि इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कीटनाशकों पर जीएसटी 18 फीसदी है. इसकी वजह से किसान बिल नहीं लेना चाहते और इसलिए नकली कीटनाशकों पर रोक नहीं लग पा रही है. हैरानी की बात तो यह है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही ही कई बार नकली कीटनाशकों की खेप पकड़ी गई है. इसके बावजूद कुछ संगठन और स्वार्थी तत्व किसानों के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं और सिर्फ 2 फीसदी नकली कीटनाशक बताकर सबको बरगला रहे है.
आनंद ने कहा कि वर्ष 1950 से भारत की कृषि उत्पादकता 6 गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है जो कि निश्चित ही एक सराहनीय उपलब्धि है. लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में प्रति एकड़ उपज कई विकसित और विकासशील देशों से काफी कम है. ज्यादा कृषि योग्य भूमि और चीन से 67 ज्यादा वर्षा होने के बावजूद भारत की कृषि जीडीपी चीन की एक तिहाई है. कम उपज इसका एक मुख्य कारण है. कम उपज का कारण घटिया किस्म के कृषि-रसायनों सहित बदतर इनपुटों का इस्तेमाल है. लेकिन, फिर भी कुछ स्वार्थी तत्व कह रहे हैं कि पूरे बाजार का केवल 2 फीसदी ही कीटनाशक नकली हैं. यह कुछ और नहीं बल्कि किसानों के साथ धोखा और ठगी है.
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किसान नेता आनंद ने कहा कि नकली कीटनाशक बाजार एक सामानांतर इंडस्ट्री बन चुकी है, जो कि बड़ी एवं सुप्रसिद्ध कंपनियों द्वारा दोषियों के खिलाफ दर्ज हुईं एफआईआर की संख्या से पता चलता है. नकली एग्री इनपुट किसानों की आजीविका, उपज, फसल गुणवत्ता, आय और व्यापक तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रहे हैं. वर्ष 2021 में दक्षिण भारत में 9 लाख एकड़ में मिर्ची की फसल की बर्बादी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि फसल को नुकसान मुख्य तौर पर घटिया किस्म के कीटनाशकों के कारण हुआ था. अंततः नुकसान किसानों और उपभोक्ताओं का ही हुआ. ऐसे दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है.
एक और उदाहरण देते हुए आनंद ने कहा कि कर्नाटक सरकार ने ऐसे 250 नकली कीटनाशकों के सैंपल लेकर उनका लैब में परीक्षण किया था. वो सभी सैंपल रासायनिक कीटनाशकों की परत चढ़े मिले, लेकिन धोखाधड़ी और स्मगलिंग का मामला होते हुए भी आश्चर्यजनक तौर पर इस मामले में कीटनाशक अधिनियम 1968 और नियम 1971 के तहत मात्र साधारण सी कार्यवाई कर इसे रफा-दफा कर दिया गया. इनमें से कुछ तथाकथित जैव-कीटनाशक 10-12 रासायनिक कीटनाशकों का कॉकटेल थे. जिनमें से कुछ तो भारत में रजिस्टार्ड भी नहीं थे, जो संकेत देता है कि वे विदेश से स्मगलिंग करके लाए गए थे.
आरकेपीए के राष्ट्रीय महासचिव पवन पायल ने भी इसी तरह के विचार रखे और कीटनाशक डीलरों, खुदरा विक्रेताओं से लिए गए सैंपलों में हेराफेरी को देश में घटिया कीटनाशकों के फलते-फूलते बाजार की जड़ बताया. उन्होंने कहा कि कीटनाशक अधिनियम 1968 की धारा 21 कीटनाशक इंस्पेक्टर को खास शक्तियां देती है, और कीटनाशक नियम, 1971 के अंतर्गत नियम 27 उनके कर्तव्यों को परिभाषित करता है कि कीटनाशक इंस्पेक्टर अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कीटनाशक बेचने वाले सभी संस्थानों का निरीक्षण करेगा. साथ ही प्रत्येक लाइसेंसधारी के यहां कम से कम तीन बार जाकर विश्लेषण के लिए सैंपल लेगा. लेकिन इसके विपरीत कीटनाशक इंस्पेक्टरों द्वारा सैंपल लेने की तौर-तरीकों में काफी विसंगतियां पाई गईं हैं.
पायल ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के आरटीआई डाटा के अनुसार तेलंगाना राज्य में कुल 19280 सैंपल में से लगभग 50 फीसदी (9430) सैंपल कुल 240 कंपनियों की जगह सिर्फ 8 कंपनियों से लिए गए. शेष 9850 सैंपल 232 कंपनियों से लिए गए. पिछले पांच वर्षों के दौरान 48 कंपनियों से औसतन मात्र एक सैंपल लिया गया. ऐसी ही कुछ स्थिति राजस्थान में मिली, जहां 83.51 फीसदी सैंपल 'ए' और 'बी' स्तर की कंपनियों से लिए गए थे, और घटिया उत्पाद वाली कंपनियों को नजरअंदाज कर दिया गया था.
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