जैविक कीटनाशकों की खपत में गिरावट, क्या किसानों का भरोसा कमजोर हो रहा है?

जैविक कीटनाशकों की खपत में गिरावट, क्या किसानों का भरोसा कमजोर हो रहा है?

हाल के कुछ राज्यों में जैविक कीटनाशकों की खपत में गिरावट देखी गई है, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या किसान इन पर से अपना भरोसा खो रहे हैं? सरकार और कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों के बावजूद, किसान अब भी पारंपरिक रासायनिक कीटनाशकों को प्राथमिकता दे रहे हैं. जहां कुछ राज्यों में जैविक कीटनाशकों का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है, वहीं रासायनिक कीटनाशकों की खपत लगभग स्थिर बनी हुई है.

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जैविक कीटनाशकों की खपत में गिरावट, क्या किसानों का भरोसा कमजोर हो रहा है?जैविक कीटनाशकों के उपयोग में कमी आई. सांकेतिक फोटो

भारत में जैविक खेती और जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद हाल के वर्षों में इनकी खपत में गिरावट देखी गई है. यह चिंता का विषय है, क्योंकि जैविक कीटनाशक न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी सहायक होते हैं. भारत सरकार के पौध संरक्षण, संगरोध एवं भंडारण निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा जैविक कीटनाशकों की खपत है. साल 2023-24 में देश में 7816 टन जैविक पेस्टीसाइड की खपत हुई, जिसमें पश्चिम बंगाल में 1575 टन की खपत है, जबकि दूसरे स्थान पर तमिलनाडु में खपत 957 टन है. कुछ राज्यों में जैविक कीटनाशकों की खपत में भारी गिरावट देखी गई है.

हालांकि, भारत में जैविक कीटनाशकों की खपत बहुत ही धीमी गति से बढ़ रही है, जो विभिन्न राज्यों में असमान रूप से बंटी हुई है. महाराष्ट्र और राजस्थान सबसे अधिक इस्‍तेमाल करने वाले राज्य थे, लेकिन अब इन राज्यों के किसानों ने लगभग इस्‍तेमाल करना ही बंद कर दिया है, जबकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु,  पूर्वोत्तर राज्यों में भी हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है.

जैविक कीटनाशकों से किसानों का भरोसा क्यों टूटा ?

भारत सरकार के पौध संरक्षण, संगरोध एवं भंडारण निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में, जहां किसान 2019-20 में 1082 टन बायो पेस्टीसाइड का उपयोग करते थे, अब 2023-24 में केवल 28 टन की खपत हुई है. यानी लगभग 97 फीसदी कम  है. वहीं, राजस्थान में 2019-20 में 929 टन जैविक पेस्टीसाइड की खपत होती थी, जो साल 2023-24 में 154 टन का खपत हुई है यानी लगभग 86 फीसदी की खपत कम हुई है. इससे मालूम होता है कि किसान अपनी पौध सुरक्षा के लिए अभी भी जैविक कीटनाशकों पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.

देश में साल 2022-23 के मुकाबले जैविक कीटनाशकों की 600 टन ज्यादा खपत हुई, जबकि पिछले पांच साल की अगर तुलना की जाए तो जैविक कीटनाशकों के प्रति किसानों का भरोसा टूटता हुआ दिख रहा है, क्योंकि पिछले पांच साल की तुलना में 11 फीसदी की खपत में कमी आई है. सरकार द्वारा जैविक कृषि को बढ़ावा देने और किसानों में जागरूकता बढ़ाने के कारण 2015-16 से 2021-22 के बीच जैविक कीटनाशकों की खपत में 40% से अधिक वृद्धि हुई थी. हालांकि, वर्तमान आंकड़ों से पता चलता है कि यह प्रवृत्ति उलट रही है.

अभी पूरी तरह केमिकल पेस्टि‍साइड पर निर्भरता

भारत में रासायनिक कीटनाशकों की खपत पिछले नौ सालों में लगभग स्थिर बनी हुई है, जिससे पता चलता है कि किसान अभी भी अपनी फसल सुरक्षा के लिए इन पर निर्भर हैं. 1950 के दशक में इनकी खपत बहुत कम थी, लेकिन 1994-95 तक यह काफी बढ़ गई. हालांकि, सरकार की नीतियों और जैविक विकल्पों को बढ़ावा देने के कारण इसमें कुछ कमी आई है. फिर भी किसान अधिक उपज और तुरंत प्रभाव के लिए रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं.

केमिकल पेस्टि‍साइड के महाराष्ट्र-यूपी सबसे बड़े उपभोक्ता

भारत में कुल रासायनिक कीटनाशक खपत का लगभग 37 से 38 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में होता है. ये दोनों राज्य हर साल 20000 से अधिक मीट्रिक टन से अधिक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं. पंजाब तीसरे स्थान पर है, जो औसतन 5,525 मीट्रिक टन की खपत करता है. साल 2023 -24 के आंकड़े के अनुसार, 55235.84 टन देश में कुल केमिकल पेस्टीसाइड की खपत है जिसमें उत्तर प्रदेश में 11828 टन है वही महाराष्ट्र में खपत 8718 टन है .

जैविक कीटनाशकों की चुनौतियां और समाधान

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी,  समस्तीपुर पूसा  डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमाटोलॉजी हेड ने कहा जैविक कीटनाशकों की जैविक कीटनाशकों को अपनाने के कई फायदे हैं, लेकिन किसानों के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं. इन चुनौतियों का समाधान करके ही जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा दिया जा सकता है. जैविक कीटनाशक रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में महंगे होते हैं. छोटे और सीमांत किसानों के लिए इनका खर्च उठा पाना मुश्किल होता है.

सरकार को जैविक कीटनाशकों पर सब्सिडी देनी चाहिए, ताकि किसानों के लिए ये किफायती बन सकें. सहकारी समितियों के माध्यम से जैविक कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए. इससे किसानों को आसानी से और कम कीमत पर जैविक कीटनाशक मिल सकेंगे. जैविक कीटनाशकों का प्रभाव धीरे-धीरे दिखता है, जिससे कई किसान इन्हें अपनाने से हिचकते हैं. इसके लिए अनुसंधान और विकास पर जोर दिया जाए.

किसानों को जैविक कीटनाशकों के उपयोग की सही तकनीकों के बारे में बताना चाहिए, ताकि वे इनका प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकें. क्योंकि किसान अभी भी जैविक कीटनाशकों के उपयोग और उनके लाभों के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते. उन्होंने कहा कि जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देने के लिए इन चुनौतियों का समाधान करना जरूरी है. सरकार, कृषि वैज्ञानिक और किसान सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे, ताकि जैविक कीटनाशकों को किसानों के लिए अधिक सुलभ, किफायती और प्रभावी बनाया जा सके.

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