सब्जी फसलों की ढाल है ये जैविक दवा, रोगों पर वार और खेती शानदार!

सब्जी फसलों की ढाल है ये जैविक दवा, रोगों पर वार और खेती शानदार!

खेती में रसायनों का अधिक उपयोग मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. ऐसे में ट्राइकोडर्मा जैसी जैविक दवा एक प्रभावी और सुरक्षित समाधान है. यह लाभकारी फफूंद मिट्टी में मौजूद हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर फसलों को स्वस्थ बनाती है. ट्राइकोडर्मा से फसल के बीज उपचार करने और मिट्टी में प्रयोग करने से फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसके अलावा, ट्राइकोडर्मा पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है और उन्हें पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में मदद करता है.

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सब्जी फसलों की ढाल है ये जैविक दवा, रोगों पर वार और खेती शानदार!सब्जियों की खेती (सांकेतिक तस्वीर)

खेती में सफलता केवल मेहनत पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि सही तकनीकों और जैविक साधनों का उपयोग भी इसमें अहम भूमिका निभाता है. यदि आप अपनी फलों और सब्ज़ियों की फसल को रोगों से सुरक्षित और अधिक उत्पादक बनाना चाहते हैं, तो ट्राइकोडर्मा हरजियानम या ट्राइकोडर्मा वीरीडी (Trichoderma harzianum या Trichoderma viride) आपके लिए एक वरदान साबित हो सकता है. यह लाभकारी फफूंद न केवल बीज और पौधों को सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि मिट्टी में मौजूद हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर उसकी उर्वरता बढ़ाता है.

अगर सब्ज़ी की खेती में उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं और रोगों से मुक्त स्वस्थ फसल पाना चाहते हैं, तो ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें. यह न केवल एक जैविक और सुरक्षित उपाय है, बल्कि आपकी मिट्टी को भी स्वस्थ बनाए रखता है और आपकी उपज की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है.

बीजों को सुरक्षा और मजबूत शुरुआत दें 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा समस्तीपुर, बिहार   के विभागाध्यक्ष, डॉ एस. के. सिंह ने कहा कि किसी भी फसल की सफलता की नींव उसके बीजों से शुरू होती है. ट्राइकोडर्मा का बीज उपचार फसल की सुरक्षा और उत्पादकता को बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका है. ट्राइकोडर्मा से अनाज, तिलहनी, दलहनी, सब्जी फसलों सहित किसी फसल के बीज को उपाचरित करने से बीजों का  बेहतर अंकुरण होता है जिससे पौधों का शुरुआती विकास बेहतर होता है. इसका उपयोग जायद के लिए मूंग, उड़द, सब्जी फसलें जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्च, फूलगोभी, पत्तागोभी में मिट्टीजनित रोगों से बचाव के लिए कर सकते हैं. खीरा, लौकी, तोरई, करेला की जड़ों की मजबूती और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. साथ ही धनिया, पालक, मेथी की स्वस्थ वृद्धि और अधिक उत्पादन के लिए इसका उपयोग किया जाता है. 

बीज उपचार की विधि 

डॉ एस. के. सिंह ने के अनुसार, 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को प्रति किलो बीज की दर से पानी में घोल लें. इसमें बीजों को इस घोल में 30 मिनट तक भिगोकर रखें. छाया में सुखाने के बाद तुरंत बुवाई करें. इस विधि से बीजों पर मौजूद हानिकारक फफूंद नष्ट हो जाते हैं और पौधे की जड़ों को मजबूती मिलती है.

मिट्टी के खतरों से बचाव  

मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंद और जीवाणु फसलों के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं. ट्राइकोडर्मा का मिट्टी उपचार इन खतरों को प्रभावी रूप से नियंत्रित करता है और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है.

मिट्टी उपचार की विधि    

  • 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाएं.
  • इसे प्रति एकड़ खेत में डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें.
  • बुवाई से पहले मिट्टी में नमी बनाए रखें.

यह लाभकारी फफूंद मिट्टी में मौजूद हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती है और पौधों की जड़ों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है. 

फसल को बनाएं मजबूत 

जब बीज और मिट्टी दोनों स्वस्थ होंगे, तो फसल का विकास भी जोरदार होगा. ट्राइकोडर्मा पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाकर पोषक तत्वों को अधिक प्रभावी तरीके से अवशोषित करने में मदद करता है. इससे फसलें सूखे और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलने में सक्षम होती हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.ये सब्जी फसलों में डंपिंग ऑफ़, जड़ सड़न, तना सड़न और पत्तों के धब्बों जैसी बीमारियों से बचाव करता है. यह जड़ों को मजबूत करता है और पोषक तत्वों के अवशोषण की क्षमता को बढ़ाता है.

रसायनों के बजाय जैविक समाधान अपनाकर आप अपनी मिट्टी की सेहत को बनाए रख सकते हैं. यह लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाकर मिट्टी की जैविक सक्रियता को बढ़ावा देता है. ट्राइकोडर्मा को अपनाकर अपनी सब्ज़ियों की खेती को सुपरचार्ज करें और भरपूर लाभ कमाएं.

 

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