चना, अरहर और मसूर समेत अन्य दलहन फसलों में कीटों-रोगों को खत्म करने के लिए दलहनडर्मा रोगनाशक पेश किया है. इसके अलावा दलहनडर्मा पौधे की ऊंचाई बढ़ाने, मिट्टी के खराब तत्वों को खत्म करने के साथ ही उपज में 12 फीसदी बढ़ाने की क्षमता रखता है. दलहनडर्मा किसानों की लागत घटाने में भी मदद करेगा. ICAR-IIPR के अनुसार दलहडर्मा जैविक तरीके से कई साल की रिसर्च के बाद तैयार किया गया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर (ICAR-IIPR) के वैज्ञानिकों ने जैविक तरीके से दलहनडर्मा को तैयार किया है. इसे बुंदेलखंड समेत यूपी के अन्य इलाकों में इस्तेमाल करने की सलाह दी है. यह दलहन पौधों की जड़ों में लगने वाले रोगों से फसल को बचाने में सक्षम है. इसके इस्तेमाल के बाद किसानों को रोग से निपटने के लिए पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा. दलहनडर्मा का इस्तेमाल अरहर, चना, मसूर और मूंग समेत अन्य दलहन फसलों में किया जा सकता.
ICAR-IIPR के अनुसार दलहनडर्मा फसल में होने वाले ट्राइकोडर्मा एस्परेलम स्ट्रेन यानी फंगस रोग को रोकने के लिए टैल्क बेस्ड फार्मूलेशन है. दलहनडर्मा को जैविक तरीके से तैयार किया गया है. दलहनडर्मा के इस्तेमाल से दलहन फसलों के पौधों की ऊंचाई 25 फीसदी तक बढ़ाता है. दलहनडर्मा के रूप में विकसित फार्मूलेशन मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है और मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की आबादी को बढ़ाता है. जिससे फसल की उपज 10-12 फीसदी तक भी बढ़ने की संभावना रहती है.
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर (ICAR-IIPR) के अनुसार बीज उपचार के लिए किसान 10 ग्राम दलहनडर्मा को प्रति किलोग्राम बीज में इस्तेमाल करें. यह अरहर, चना और मसूर में बीज अंकुरण, टहनियों की लंबाई, जड़ों का फैलाव और लंबाई, पौधे की ऊंचाई में तेज बढ़ोत्तरी करता है. दलहनडर्मा के इस्तेमाल से विल्ट रोग को रोकने में सफलता मिली है. विल्ट रोग पौधे को अंदर से नष्ट करना शुरू करता है और पूरी तरह सुखा देता है. दलहन फसलों के लिए विल्ट रोग बेहद घातक माना जाता है.
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