खरीफनामा: कृषि वैज्ञानिक खेतों में यूरिया का कम प्रयोग करने की सलाह देते हैं, लेकिन इसके उलट कृषि में यूरिया का उपयोग घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है, जबकि यूरिया के अत्यधिक उपयोग से खेत बंजर होने की तरफ बढ़ रहे हैं. ऐसे में किसानों के पास यूरिया का विकल्प नील हरित शैवाल (ब्लू ग्रीन एलगी) है, जो एक बायो फर्टिलाइजर है. असल में ब्लू ग्रीन एलगी वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित कर पौधों को देता है. वैज्ञानिकों की मानें तो एक किलो ब्लू ग्रीन एलगी, एक बोरी यूरिया के बराबर काम करता है. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में ब्लू ग्रीन एलगी पर पूरी रिपोर्ट...
असल में ब्लू ग्रीन एलगी जलीय जीवाणु का एक समूह है, जिसे साइनोबैक्टीरिया भी कहा जाता है. यह काई के आकार का होता है, जो अपना भोजन स्वयं बनाने में सक्षम है. साथ ही यह मिट्टी में मौजूद वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके पौधों को लाभ पहुंचाता है. इसके उपयोग से ना केवल धान की उपज में वृद्धि होती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी फसलों के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन , कार्बनिक और अन्य पोषक तत्वों की वृद्धि होती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा, नई दिल्ली में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख, डॉ सुनील पब्बी ने किसान तक से बातचीत में कहा कि ब्लू ग्रीन एलगी एक कम लागत पर एक उत्तम जैविक खाद है जो मिट्टी, लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि को टिकाऊ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. डॉ पब्बी के मुताबिक हवा में 78 फीसदी नाइट्रोजन मौजूद है.
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वहीं 100 किलो यूरिया में 46 फीसदी नाइट्रोजन ही आती है. उनमें से कुछ हवा में भी उड़ते हैं, ऐसे में ब्लू ग्रीन एलगी किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है. इससे लाभ यह है कि यूरिया मिट्टी की गुणवत्ता को कम करता है, जबकि एलगी इसे सुधारता है. इसका उपयोग अम्लीय और क्षारीय मिट्टी के उपचार के लिए भी किया जाता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ. पब्बी ने कहा कि धान के लिए नील हरित शैवाल और अजोला को दो जैव उर्वरक संस्थानद्वारा तैयार किया गया है. यह एलगी पाउडर के रूप में उपलब्ध है. धान की बुवाई के एक सप्ताह के अंदर ब्लू ग्रीन एलगी खाद का प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ 500 ग्राम पैकेट कल्चर उपलब्ध है जिसे 4 से 5 किलों सुखे खेत की मिट्रृटी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है, इस खाद को पूरे खेत में खड़े पानी के स्थिति में बुरक दिया जाता है.अगर अधिक प्रयोग किया जाए तो कोई नुकसान नहीं है. उन्होंने कहा कि एलगी पाउडर का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत में लगभग दस दिनों तक पानी भरा रहे. , इसका उपयोग खासतौर पर उन फसलों के लिए किया जा सकता है, जिन्हें अधिक पानी की जरूरत होती है.अगर खेत में पानी भरा होगा होगा तो बेहतर परिणाम देता है. धान की फसल में नील ब्लू ग्रीन एलगी का प्रयोग करना है तो खेत में इसकी मात्रा 20 से 25 किग्रा नाइट्रोजन प्रति एकड़ निर्धारित की जाती है. यानि 40 से 50 किलो यूरिया की बचत होती है. साथ ही इसके प्रयोग से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और अन्य पादप वृद्धि रसायनों जैसे ऑक्सिन, जिबरेलिन, पाइरिडोक्सिन, इंडोल एसिटिक एसिड आदि की मात्रा बढ़ जाती है.
किसान तक से बातचीत में डॉ. सुनील पब्बी ने बताया कि धान में ग्रीन ब्लू एलगी के प्रयोग से शैवाल तेजी से बढ़ता है. उन्होंने बताया कि अगर किसान चार से पांच बार ग्रीन ब्लू एलगी जैविक खाद का प्रयोग करते हैं तो खेत में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की संख्या इतनी बढ़ जाती है और भविष्य में ग्रीन ब्लू एलगी का प्रयोग करने की कोई ज़रूरत नहीं होती है. ऐसे में धान की खेती में लागत कम आती है. डॉ पब्बी का कहना है यूरिया के लिए किसान का काफी पैसा खर्च होता है. भारत में लगभग 43 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है, अगर धान उगाने वाले क्षेत्र के आधे भाग में नील हरित शैवाल का प्रयोग किया जाए तो 10 लाख टन रासायनिक नाइट्रोजन की बचत की जा सकती है. पूसा शैवाल प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम नाइट्रोजन का योगदान देता है.
IARI ने ग्रीन ब्लू एलगी को विकसित किया है. मौजूदा समय में ग्रीन ब्लू एलगी पूसा के माइक्रोबॉयोलाजी विभाग में उपलब्ध है. जहां से संपर्क करके इसे खरीदा जा सकता है. वहीं जल्दी से इसे बाजार में भी उतारने की तैयारियां है. इसको लेकर निजी कंपनियों के साथ IARI ने एक करार किया है. बाजार में इसकी कीमत 100 किलो तक है.
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