अक्टूबर से पूरे देश में मटर की बुवाई शुरू हो जाएगी. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इस बार पिछले साल के मुकाबले मटर का रकबा अधिक होगा. लेकिन कई किसानों को मटर में लगने वाले रोगों को लेकर चिंता भी सता रही है. उन्हें डर है कि अगर मटर की फसल में भभूतिया रोग लग गया तो उपज प्रभावित हो सकती है. इससे फायदा तो दूर लागत निकालना भी मुश्किल हो जाएगा. पर किसानों को इन रोगों को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे नीचे बताए गए तरीकों को अपना कर अपनी मटर की फसल को रोग की चपेट में आने से बचा सकते हैं.
एक्सपर्ट की माने तो मटर की बुवाई करने से पहले बीजों का उपचार करना चाहिए. इससे फसल में रोग लगने का खतरा कम हो जाता है. साथ ही पौधों का विकास भी तेजी से होता है. अगर आप किसान हैं और मटर की बुवाई की प्लानिंग बना रहे हैं, तो राइजोबियम संवर्धक कल्चर से बीजों को उपचारित कर सकते हैं. वहीं, बीजजनित रोगों के उपचार के लिए आप मटर की फसल में फफूंदनाशक दवा थीरम एवं कार्बेण्डाजिम और रसचूसक कीटों से बचाव के लिए थायोमिथाक्जाम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर का प्रयोग कर सकते हैं. इससे फसल में रोग नहीं लगेंगे और उपज भी बेहतर मिलेगी.
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मटर की फसल में भभूतिया रोग लगने पर पत्तियों एवं शाखाओं पर सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ दिखाई देने लगता है. रोग के नियंत्रण के लिए बीजोपचार थीरम एवं कार्बोण्डाजिम और घुलनशील सल्पफर या मैंकोजब का पर्णीय छिड़काव अनुशंसा अनुसार करना चाहिए. दवा की व्यापारिक मात्रा 2.1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार और 1 से 1.5 ग्राम प्रति लीटर या 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. बुआई के समय बीजोपचार और खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 500 लीटर पानी का प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें.
ऐसे मटर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बलुई मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी मानी गई है. इसका पीएच मान 6-6.5 होना चाहिए. इसकी बुवाई करने से पहले किसान को खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके बाद फिर कल्टीवेटर या रोटावेटर से 2-3 बार जुताई करें और पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें. वहीं अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में नमी का होना जरूरी है. यदि खेत में दीमक, तना मक्खी एवं लीफ माइनर का प्रकोप हो तो अंतिम जुताई के बाद फोरेट 10जी, 10-12 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से मिलाकर बुआई करनी चाहिए.
मटर की बुवाई के लिए अक्तूबर से नवम्बर का समय सही रहता है. बीजों के आकार और बुआई के समय के अनुसार बीज दर अलग-अलग हो सकती है. मटर की बुआई पक्तियों में नाली हल, सीडड्रिल, सीड कम पफर्टीड्रिल से करनी चाहिए. समय पर बुआई करने के लिए 70 से 80 किग्रा. प्रति हेक्टेयर जबकि पछेती बुआई के लिए 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करें. किसान चाहें, तो मटर को गेहूं और जौ के साथ अंतः फसल के रूप में भी बो सकते हैं. हरे चारे के रूप में जई और सरसों के साथ इसे बोया जाता है.
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