किसान आंदोलन जारी है. इस बीच देश के अंदर MSP को लेकर राजनीतिक शह-मात का खेल जारी है. 13 फरवरी को सड़क से शुरू हुए किसान आंदोलन की बीते दिनों संसद में एंट्री हुई थी. मसलन, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत इंडी गठबंधन के नेताओं ने बजट सत्र के दौरान MSP गारंटी के मुद्दों से जुड़े सवाल उठाते हुए सरकार की घेराबंदी की थी. साथ ही इंंडी गठबंधन की सरकार बनने पर MSP गारंटी कानून लागू करने का इशारा किया था.
संसद की बिसात पर राहुल गांधी और इंंडी गठबंधन के सहयोगियों की 'MSP से जुड़ी राजनीतिक चाल' का बीते दिनों कृषि मंंत्री शिवराज सिंह चौहान जवाब दे चुके हैं, जिसके तहत वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक फसलों के दाम तय ना करने को लेकर कांग्रेस का स्टैंड से जुड़ा कैबिनेट नोट संसद के पटल पर रख चुके हैं. इसी बीच हरियाणा सरकार ने चुनाव से ठीक पहले सभी 24 फसलें MSP पर खरीदने का वादा किया है, जिसे सोमवार को कैबिनेट ने मंजूरी दी है.
कुल जमा MSP पर राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल जारी है, जिसे MSP पर राजनीतिक दलों की रस्म-अदायगी कहा जा सकता है. इसके पीछे वजह ये है कि राजनीतिक दलों के बीच MSP पर नूरा-कश्ती तो जारी है, लेकिन इसे किसानों के मुद्दों के समाधान की सार्थक कोशिश नहीं कहा जा सकता है.
बेशक, MSP गारंटी कानून की मांग केंद्र की बीजेपी लीड एनडीए सरकार से हो रही है, लेकिन ये सच है कि कांग्रेस ने इस मांग को राजनीतिक संजीवनी दी है. अब जरूरी है कि हरियाणा में MSP पर फसल खरीद के ऐलान को आईना दिखाते हुए कांग्रेस लीड इंडी गठबंधन इस मुद्दे पर अपना ठोस इरादा दिखाए.
आज की बात इसी पर, जिसमें समझेंगे कि क्यों MSP पर जारी संग्राम और ऐलान को रस्म-अदायगी कहा जा रहा है. साथ ही जानेंगे कि हरियाणा सरकार की घोषणा के मायने क्या हैं और कांग्रेस को कैसे MSP गांरटी के मुद्दे पर ठोस इरादा दिखाना होगा.
देश के अंदर इन दिनों MSP का मुद्दा सबसे अधिक प्रांंसगिक है. कांग्रेस संसद में MSP का मुद्दा विपक्ष उठा चुका है. इसके पलटवार में कृषि मंंत्री MSP और किसान पर कांग्रेस की पूववर्ती सरकार का हाल बता रहे हैं. इस बीच हरियाणा सरकार ने MSP पर फसल खरीद के प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूर कर लिया है. अगर कायदे से MSP के इन तीनों पक्ष को देखें तो इसे MSP पर राजनीतिक दलाें की सिर्फ रस्मअदायगी कहा जा सकता है. इसे सिलेसिलेवार ढंग से समझने की कोशिश कहते हैं.
पहला, किसान नेताओं ने MSP गारंटी कानून को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात का मकसद संसद में MSP गारंटी की मांग को उठाना और इसी मुद्दे पर विपक्ष की तरफ से संसद के अंदर प्राइवेट बिल को पटल पर रखना था.
बेशक राहुल गांधी और इंडी गठबंधन के नेताओं ने MSP और MSP गारंटी के मुद्दे को संसद में उठाया, लेकिन MSP गारंटी कानून पर प्राइवेट बिल की मांग पर अभी तक अमल नहीं किया, जबकि मौजूदा समय को इस बिल के लिए सबसे माकूल समझा जा रहा था.
जैसा कि माना जा रहा था कि अगर ये बिल संसद में आता तो देशभर के किसानाें को फिर से एकजुट होने का मौका मिलता, लेकिन अभी तक कांग्रेस यानी इंडी गठबंधन की तरफ से MSP पर रस्म अदायगी हुई है.
दूसरा, बीजेपी लीड केंद्र सरकार बेशक MSP के मुद्दे पर पलटवार कर रही है, जिसके तहत MSP और किसानों को लेकर पूववर्ती कांग्रेस सरकार के स्टैंड को सार्वजनिक कर रही है, जिसे ''हमारी कमीज से अधिक तुम्हारी कमीज अधिक मैली'' वाली हरकत कहा जा सकता है. बीजेपी सरकार MSP गारंटी को लेकर कुछ भी कहने से बच रही है, जबकि मौजूदा वक्त में बीजेपी सरकार की ही जिम्मेदारी किसानों के मुद्दों का समाधान करने की है.
सदन में कृषि मंंत्री MSP कमेटी, MSP पर फसल खरीद की बात कह चुके हैं, लेकिन फसलों की MSP पर खरीद की पुख्ता व्यवस्था बनाने को लेकर कोई भी घोषणा हो रही है, जिसे MSP पर बीजेपी सरकार की रस्म अदायगी कहा जा सकता है.
तीसरा, हरियाणा सरकार ने इस बीच राज्य स्तर पर MSP पर सभी 23 फसलें खरीदने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दे दी है. चुनाव से ठीक पहले इसे किसानों के मुद्दे पर हरियाणा सरकार का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है, लेकिन इस फैसले को गहनता से समझें तो ये सिर्फ चुनावी ऐलान है, जिसे MSP पर खांटी रस्म अदायगी कहा जा सकता है.
बेशक, हरियाणा सरकार ने कैबिनेट से MSP पर खरीद को मंजूरी दे दी है, लेकिन ये मंजूरी सिर्फ एक बार के लिए है, जबकि किसानों की मांग है कि MSP पर फसल खरीद की व्यवस्था बने. इस बात को ध्यान में रखते हुए किसान MSP गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. इसके उलट हरियाणा सरकार का ये फैसला अस्थाई है, जिसकी अपनी उम्र बेहद ही कम है.
हरियाणा सरकार की कैबिनेट ने सोमवार को MSP पर फसलों की खरीद के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है. बेशक, ये फैसला चुनावी है, जिसकी उम्र बेहद ही कम है, लेकिन इस फैसले को किसानों की जीत के तौर पर देखा जा सकता है. तो वहीं इसे गांरटी कानून की तरफ बढ़ते हुए सांकेतिक कदम के तौर पर देखा जा सकता है. अगर समझें तो हरियाणा की बीजेपी सरकार ने गांवों में विरोध को कम करने के लिए ये फैसला लिया है, लेकिन हरियाणा सरकार का ये फैसला अन्य राज्य सरकारों पर भी दबाव बनाएगा. वहीं अगर हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की वापसी नहीं होती है तो दूसरी सरकार के लिए इस फैसले को मानने की मजबूरी होगी
MSP गारंटी पर राजनीतिक घमासान जारी है. केंद्र की बीजेपी सरकार MSP गारंटी पर ऐलान से परहेज कर रही है. इस बीच हरियाणा की बीजेपी सरकार ने MSP पर फसल खरीद का नए मॉडल का ऐलान किया है. यानी बिना गांरटी MSP पर फसल खरीद का मॉडल. ऐसे में कांग्रेस पर मनौवैज्ञानिक दबाव पड़ना तय है. क्योंकि कांग्रेस ने ही MSP गारंटी के मुद्दे काे मौजूदा वक्त में राजनीतिक संजीवनी दी है. इन हालातों में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को MSP गारंटी पर अपना प्लान सार्वजनिक करना होगा. मौके की नजाकत तो ये ही है कि कांग्रेस और इंडी गठबंधन वाले राज्य एक कदम आगे बढ़ते हुए MSP गारंटी कानून राज्य स्तर पर लागू करें.
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