खरीफनामा: अरहर की खेती हमेशा से किसानों के लिए फायदे का सौदा रही है. हालांकि बाजार के उतार-चढ़ाव में अरहर के दाम कम- ज्यादा हाेते रहते हैं, लेकिन अरहर की खेती करने वाले किसान बेहतर रणनीति से बाजार के उतार-चढ़ाव को भी मात दे सकते हैं. असल में किसान अरहर की कम अवधि वाली किस्माें की खेती कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. इसके लिए किसानों को कुछ सावधानियों की जरूरत होती है. क्योंकि मॉनसून का सीजन आने वाला है. ऐसे में किसान तक की विशेष सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में जानते हैं कि खरीफ सीजन में अरहर की कम अवधि वाली किस्मों की खेती कर किसान कैसे बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) नई दिल्ली के एग्रोनामी डिवीजन के प्रधान वैज्ञानिक राजीव कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि IARI ने अरहर की कम अवधि वाली एक किस्म पूसा अरहर-16 को विकसित किया है, जिसे पकने में केवल 120 दिन लगते हैं और इस किस्म से प्रति एकड़ 8 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है. इस किस्म के बोने से रबी की फसल जैसे आलू, गेहूं, सरसों आदि की समय से बुवाई की जा सकती है और इन फसलों से भी लाभ ले सकते हैं कम अवधि वाली किस्मों के लिए पूसा-992, पूसा-2001 और 2002 किस्में उपयुक्त हैं, जो 140 से 145 दिन में पक जाती है. वहीं ऊसर भूमि में पूसा-991 अच्छी उपज दे देती है.
अरहर की बुवाई के लिए किसान तक से बातचीत में राजीव कुमार सिंह ने कहा कि पहले खेत की गहरी जुताई कर लेंं. इसके बाद कल्टीवेटर से 2 या 3 जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस खेत में बुवाई करने जा रहे हैंं, वहा पानी लगने की संभावना ना हो. अगर पानी लगने की संभावनाएं हैं तो अरहर की बुवाई मेड़ों पर करनी चाहिए. अरहर की फसल में पानी लगने से फसल मुरझा जाती है. इसलिए अरहर की पानी की जरूरत कम होती है. कम अवधि वाली अरहर किस्मों की बुवाई 15 जून तक जरूर कर लेनी चाहिए, जिससे कि समय से रबी फसलों की समय से बुवाई हो सके. उन्होंने बताया कि हमेशा प्रमाणित बीज बोना चाहिए. एक एकड़ खेत के लिए 6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है .
किसान तक से बातचीत में डॉ राजीव कुमार ने कहा कि बुवाई से पहले रोग कीटों की रोकथाम के लिए बीजों का उपचार करना जरूरी है. रोगों की रोकथाम के लिए बुआई से पहले बीजों को कवकनाशी रसायनों जैसे कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम + थीरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए और कीटों के रोकथाम के लिए एक किलो बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए.
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बीजों को जैविक खाद राइजोबियम कल्चर से जरूर उपचारित करें. उन्होंने कहा कि इसके लिए आधा लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ घोलकर दो से तीन ग्राम गोंद डाल दें. अगर गुड़ न घुले तो इसे गर्म पानी मिक्स करके गुड़ घोल तैयार कर लें और जब घोल ठड़ा हो जाए तो इस घोल में 10 किलो बीज डालकर अच्छी तरह मिला लें ताकि कल्चर लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं.
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उपचारित बीजों को 4-5 घंटे के लिए छाया में फैलाकर सूखने दें. ध्यान रहे की बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचार करने के 2-3 दिन पहले फफूंदनाशी एवं कीटनाशी से उपचारित कर लेना चाहिए.
किसान तक से बातचीत में डॉ राजीव कुमार ने कहा कि कम अवधि वाली अरहर की किस्मों की बुवाई लाइन से लाइन की 60 से 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर करनी चाहिए. बीज की गहराई 4 से 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. अगर फसल में डीएपी इस्तेमाल कर रहे हैं तो यूरिया देने की जरूरत नहीं है .उन्होंने कहा कि एक एकड़ के लिए एक 50 किलों डीएपी की जरूरत है. अगर डीएपी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो 12 से 13 किलो यूरिया का प्रयोग करना चाहिए. अगर मिट्टी में पोटाश की कमी है तो 10-12 किलो म्यूरेट आफ पोटाश देना चाहिए. इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की बीज वुवाई के वक्त खेत में नमी हो, जिससे की बीजों का अंकुरण समान रूप से हो सके. अगर संभव हो तो मिट्टी जांच के आधार पर खाद -उर्वरको का प्रयोग करना चाहिए.
प्रधान वैज्ञानिक राजीव कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अरहर की फसल की बढ़वार शुरू में कम होती है और प्रथम 60 दिनों में खेत में खरपतवार की मौजूदगी फसल उत्पादकता के लिए नुकसानदायक होती है. इसलिए एक महीने के अन्दर एक बार निराई जरूरी करना चाहिए है. वहीं दूसरी निराई 45-60 दिन बाद जरुर करेंं. खरपतवारों की समस्या से निपटने के लिए बुआई के तुरन्त बाद 1 लीटर पेण्डीमिथालिन (स्टाम्प 30 ई.सी.) को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. इस बात का ध्यान रहे कि बुवाई से 36 घंटे के अंदर खरपतवारनाशी का छिड़काव जरूर हो जाना चाहिए. डॉ राजीव ने कहा कि अरहर की खेती में इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए .अरहर की खेत में पानी नही लगना चाहिए. नहीं तो अरहर की फसल मुरझा जाती है.
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