बदलते मौसम में ध्यान रखें किसान, फसलों को बचाने के लिए इन खादों का इस्तेमाल जरूरी

बदलते मौसम में ध्यान रखें किसान, फसलों को बचाने के लिए इन खादों का इस्तेमाल जरूरी

बुंदेलखंड क्षेत्र में किसानों को सलाह दी जाती है कि वे फसलों (विशेषकर गेहूं) और सब्जियों की सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें. कीटों और बीमारियों की निगरानी भी करते रहें. टमाटर, प्याज, बैगन, मिर्च और गोभी आदि की तैयार पौध को मुख्य खेतों में रोपें और रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें.

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बदलते मौसम में ध्यान रखें किसान, फसलों को बचाने के लिए इन खादों का इस्तेमाल जरूरीबढ़े तापमान से गेहूं की पैदावार में गिरावट का खतरा. (फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी IMD ने फसल एडवाइजरी जारी की है. यह एडवाइजरी मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के लिए जारी की गई है. इसमें आईएमडी ने कहा है कि सतपुड़ा पठारी क्षेत्र में चने की फसल में फूल आने पर सिंचाई न करें, इससे फूल झड़ सकते हैं. बसंतकालीन गन्ने की रोपाई की तैयारी शुरू कर दें. आने वाले दिनों में शुष्क मौसम को देखते हुए आवश्यकता के अनुसार गन्ने की फसल में सिंचाई करें.

आईएमडी ने कहा है, काइमोर पठार और सतपुड़ा पहाड़ी क्षेत्र में फूल आने के समय चने की सिंचाई न करें, इससे फूल झड़ सकते हैं. झाबुआ पहाड़ी क्षेत्र में मौसम की स्थिति के कारण, फसल और सब्जी में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है. अगर यह लिमिट को पार कर जाता है, तो कैटरपिलर को नियंत्रित करने के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट @ 10 मिली/पंप का छिड़काव करें और रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित करने के लिए थायमेथोक्सम @ 7 ग्राम/पंप (0.45-0.5 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें. टमाटर, बैंगन, मिर्च और भिंडी में शूट और फ्रूट बोरर को नियंत्रित करने के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट @ 10 मिली/पंप का छिड़काव करें.

किन खाद-स्प्रे का प्रयोग जरूरी

निमाड़ घाटी क्षेत्र में टमाटर में शुरुआती झुलसा रोग की रोकथाम के लिए टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG @ 140 ग्राम प्रति एकड़, 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. चना फूल अवस्था में है, यदि फली छेदक का हमला दिखे तो इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 80 ग्राम या इंडोक्साकार्ब 14.5% SC @ 200 मिली प्रति एकड़, 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

मध्य नर्मदा घाटी में गेहूं की फसल को 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. चने की फसल में 50/हेक्टेयर की दर से पक्षियों का बसेरा लगाएं. कीटों की आबादी को नष्ट करने के लिए प्रकाश जाल यानी लाइट ट्रैप (1 प्रकाश जाल/5 एकड़) लगाएं. 

बुंदेलखंड क्षेत्र में किसानों को सलाह दी जाती है कि वे फसलों (विशेषकर गेहूं) और सब्जियों की सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें. कीटों और बीमारियों की निगरानी भी करते रहें. टमाटर, प्याज, बैगन, मिर्च और गोभी आदि की तैयार पौध को मुख्य खेतों में रोपें और रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें.

गिर्द क्षेत्र में फसलों और सब्जियों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें और नाइट्रोजन की बची हुई खुराक दें. गेहूं में दीमक लगने की संभावना हो सकती है, सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफॉस 20 EC @ 3.5 लीटर/हेक्टेयर डालें. इल्लियों पर नजर रखें. अगर संक्रमण ज़्यादा है, तो ट्रायज़ोफ़ॉस 750 मिली/हेक्टेयर को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

गेहूं

  • 20-दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें और अंतिम यूरिया टॉप ड्रेसिंग लागू करें (यह सुनिश्चित करते हुए कि पत्तियां सूखी रहें).
  • झुलसा रोग की निगरानी करें और यदि जरूरी हो तो टेबुकोनाज़ोल का छिड़काव करें.
  • चूहों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए जिंक फॉस्फाइड की गोली (3-4 दिनों के लिए पानी रोककर) का उपयोग करें.

सरसों

  • सरसों में जरूरी नमी बनाए रखने के लिए फलियों में दाने बनने/भरने के चरण (70-55 DAS) के दौरान सिंचाई करें.
  • पाउडरी फफूंद और एफिड्स की निगरानी करें, आवश्यकतानुसार सल्फर पाउडर और इमिडाक्लोप्रिड का प्रयोग करें.

अरहर

  • फूल गिरने से बचाने के लिए फूल आने के दौरान सिंचाई से बचें. लगभग 50 परसेंट फली बनने के बाद ही सिंचाई करें.
  • इंडोक्साकार्ब के साथ फली छेदक संक्रमण को नियंत्रित करें और आईपीएम उपाय अपनाएं (प्रकाश जाल, फेरोमोन जाल और ‘टी’ आकार के पक्षी बसेरा का उपयोग करके).

मसूर

  • मसूर में फूल आने और फली भरने के चरणों के दौरान सिंचाई करें, और जलभराव से बचें.
  • पोषक तत्वों की कमी को कम करने के लिए नियमित रूप से निराई-गुड़ाई (हाथ से या उपयुक्त शाकनाशियों के साथ) करें.
  • जंग या झुलसा जैसी बीमारियों की निगरानी करें और लक्षण दिखाई देने पर उपयुक्त कवकनाशी (जैसे, मैन्कोज़ेब या क्लोरोथालोनिल) का प्रयोग करें.

 

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