टनल फार्मिंग यानी सुरंग बनाकर खेती करना, आज यह वह तकननीक है जिसे न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई किसान अपनप रहे हैं. कवर के नीचे फसल उगाना और अच्छा मुनाफा कमाना, इस तकनीक का सबसे अहम मकसद है. साथ ही इसे पर्यावरण के लिए भी काफी अच्छा माना जाता है. किसान इस तकनीक का प्रयोग अपनी आय के अलावा जीवन-यापन के लिए भी करते हैं. कई देश जहां पर काफी गरीबी है, वहां पर किसान इस तकनीक का प्रयोग अपना पेट भरने के लिए करते हैं. इस तकनीक की मदद से किसान ऐसे सब्जियों को उगा सकते हैं जिन पर लागत काफी कम आती है और इससे उन्हें मुनाफा भी होता है.
सब्जी उत्पादन के लिए वाक-इन टनल एक कम लागत वाली सुरंग रचना है. इसकी मदद से बेमौसमी सब्जियों की खेती के लिए बांस और यूवी प्रोटेक्टेट पॉलीथीन शीट से बनी होती है. इन सुरंगों का निर्माण 100 माइक्रॉन यूवी प्लास्टिक क्लैडिंग मैटेरियल और बांस की खपच्चियों का प्रयोग होता है. इस तरह से बहुत कम लागत में आसानी से इन सुरंगों का निर्माण किया जा सकता है. सुरक्षात्मक संरचनाओं के तहत सब्जी उत्पादन से कीटों, रोगों के अलावा भारी बारिश से भी फसल को नुकसान बहुत कम होता है. इस वजह से बहुत छोटे क्षेत्र में ज्यादा उत्पादन में सफलता हासिल की जा सकती है.
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इस तरह की खेती में सर्दी के मौसम में बेमोसमी सब्जी जैसे लौकी, खरबूजा, तरबूज, खीरा, कद्दू और कद्दू के जैसी दूसरी सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है. इस तरह की संरक्षित खेती में दिन के समय जब सूर्य की रोशनी प्लास्टिक पर पड़ती है तो टनल के अंदर का का तापमान करीब 10 से 12 डिग्री तक बढ़ जाता है. इससे कद्दू जैसी बाकी सब्जियों को कम तापमान के में भी सफलतापूर्वक उगाने में सफलता मिलती है.
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वॉक-इन- टनल की लंबाई को जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सकता है. लेकिन आमतौर पर इनकी लम्बाई 25 से 30 मीटर तक होती है. अस्थाई होने के कारण इनकी देखभाल भी आसानी से हो सकती है और ऐसे में रखरखाव में भी कम खर्च आता है. हालांकि इन संरचनाओं का प्रयोग सिर्फ सर्दी के मौसम में यानी दिसंबर से फरवरी तक ही फसल उत्पादन के लिए किया जा सकता है. गर्मियों में अंदर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. साथ ही हवा का आदान-प्रदान नहीं होने के कारण फसल नहीं उग पाती है. इस तकनीक का प्रयोग पहाड़ी क्षेत्रों में और भी ज्यादा समय तक सब्जी उत्पादन के लिए किया जाता है.
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