इस समय काफी किसान परंपरागत खेती छोड़कर बाजार की मांग के अनुसार फसल उत्पादन कर रहे हैं, जिससे कि अच्छा मुनाफा मिले. इसी में से एक है मेंथा, जिसे पिपरमिंट भी कहा जाता है. कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी खेती से किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं. मेंथा की एक यह भी विशेषता है कि जहां आवारा पशुओं, नीलगाय और जंगली पशु आदि से फसल को नुकसान होता है, वहीं मेंथा में इसका भी डर नहीं रहता. इसकी पत्ती में कड़वाहट होने के कारण कोई पशु इसे नहीं खाता है. कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि मेंथा की एक हेक्टेयर खेती से लगभग एक लाख रुपये तक का शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है. लेकिन यह लाभ तब मिलेगा जब आप इसके पांच बड़े दुश्मनों से इसे बचाएंगे.
कृषि वैज्ञानिक श्रीमन कुमार पटेल, संजय कुमार, मनोज कुमार, दिग्विजय दुबे और श्यामवीर सिंह ने मेंथा के इन पांच दुश्मनों के बारे में जानकारी दी है. ये पांचों दुश्मन फसल सुरक्षा से जुड़े हुए हैं. अगर आप मेंथा की खेती कर रहे हैं तो इनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए.
मेंथा की फसल में दीमक लगने से पौधे सूखने लगते हैं. इससे बचाव के लिए क्लोरपाइरीफॉस 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए.
यह पत्तियों के नीचे पाई जाती है.यह पत्तियों के रस को चूसती है और तेल की मात्रा कम हो जाती है. इससे बचाव के लिए डाईक्लोरवास 500 एम. एल. को 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
यह कीट पत्तियों को लपेटते हुए खाता है. इसके बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. 1000 एम.एल. को 700-800 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
फसल में इसका प्रकोप होने पर पत्तियों में गहरे भूरे रंग के दाग दिखाई देते हैं. पत्तियां पीली होने लगती हैं. इससे बचाव के लिए मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
मेंथा को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए पौधों को रोपाई से पहले 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 10-15 मिनट डुबोकर रोपाई करनी चाहिए.
मेंथा के पौधे की रोपाई के 15-20 दिन बाद पहली गुड़ाई तथा 45 दिन बाद दूसरी गुड़ाई कर देनी चाहिए. यदि खरपतवार का नियंत्रण रासायनिक विधि से करना हो तो पेंडामेथेलिन 3.3 लीटर का 500-700 लीटर पानी में घोल तैयार कर रोपाई के 2-3 दिन बाद स्प्रे कर देना चाहिए.
मेंथा की फसल की पहली कटाई फूल आने (90 दिन) पर करनी चाहिए. कटाई करने से एक सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. कटाई देर से करने पर पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. कटाई धूप में करके रात भर छोड़ देनी चाहिए तथा जमीन से 4-5 सेंटीमीटर ऊपर ही कटाई करें ताकि दूसरी फसल ली जा सके. दूसरी कटाई पहली कटाई के लगभग 40-45 दिनों बाद की जाती है. यदि मेंथा की फसल देर से लगाई गई हो तो एक ही कटाई हो पाती है. एक हेक्टेयर मेंथा से लगभग 40-50 टन फसल मिलती है. इससे लगभग 140-160 लीटर तेल प्राप्ति की जा सकती है.
ये भी पढ़ें: नासिक की किसान ललिता अपने बच्चों को इस वजह से खेती-किसानी से रखना चाहती हैं दूर
ये भी पढ़ें: Onion Export Ban: जारी रहेगा प्याज एक्सपोर्ट बैन, लोकसभा चुनाव के बीच केंद्र सरकार ने किसानों को दिया बड़ा झटका
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today