खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की बुवाई का समय अब आ गया है. इसके लिए नर्सरी डालने का काम अभी चल रहा है. धान की भारत में अनगिनत किस्में मौजूद हैं, जिनमें बासमती सबसे खास मानी जाती है. इसका न सिर्फ खूब एक्सपोर्ट होता है बल्कि महंबा बिकने की वजह से इससे किसान पैसा भी खूब कमाते हैं. बासमती में भी पूसा बासमती 1121 और 1509 सबसे खास है. इन दोनों किस्मों की सबसे ज्यादा बुवाई होती है. इन दोनों की खूब मांग है इसलिए किसान इसकी खेती करते हैं. पूसा बासमती 1509 तो जल्दी पकने वाली, कम ऊंचाई वाली, जमीन न गिरने वाली और न टूटने वाली किस्म है. यानी आंधी-बारिश में भी इसके जमीन पर गिरने के चांस कम होंगे.
इस साल भारत ने लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट किया है, जिनमें पूसा बासमती 1121 का सबसे अधिक योगदान है. यह अधिकतम विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली किस्म है. इसकी किसान सबसे ज्यादा बुवाई करते हैं. एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती होती है, जिसमें से लगभग 45 प्रतिशत पर अकेले इसी एक ही किस्म का कब्जा है. इसका चावल दुनिया में सबसे लंबा है.
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देश के बासमती उगाने वाले (जीआई क्षेत्र) क्षेत्रों के लिए अनुशंसित
औसत अनाज की उपज 135 दिनों की परिपक्वता के साथ 46.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है
यह पूसा बासमती 1121 का एक एमएएस व्युत्पन्न बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी संस्करण है, जिसे विशेष रूप से विकसित किया गया है यह देश में, बासमती चावल की तीन शीर्ष, विदेशी मुद्रा अर्जक किस्मों में से एक है.
जल्दी पकने वाली, कम ऊँचाई वाली, जमीन न गिरने वाली और न टूटने वाली किस्म
औसत बीज उपज 41.4 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है
यह 115 दिनों में परिपक्व होती है जो पूसा बासमती 1121 से 30 दिन पहले है
यह 3-4 सिंचाई बचाता है और जल्दी पकने के कारण किसानों को गेहूं के खेत की तैयारी के लिए पर्याप्त समय देता है जिससे अवशेषों को जलाने में कमी आती है
33% पानी बचाता है
चावल की चमत्कारी किस्म जारी की गई जिसने हरित क्रांति की शुरुआत की.
130 दिनों की अवधि वाली अर्ध-बौनी चावल की किस्म जिसकी उपज क्षमता 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
उपज की सारी बाधाओं को तोड़कर, 60 के दशक के अंत से 70 के दशक के प्रारंभ में देश को आत्मनिर्भरता की स्थिति में लाकर खरा किया.
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