तरबूज की खेती दिसंबर से लेकर मार्च तक की जा सकती है. लेकिन इसकी बुवाई का उचित समय मध्य फरवरी माना जाता है. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में इसकी खेती की जाती है. तरबूज की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. बाज़ार में इसका भाव भी अच्छा मिलता है. तरबूज की खेती की खास बात ये है कि इसे कम पानी, कम खाद और कम लागत में उगाया जा सकता है. ऐसे में तरबूज की अच्छी फसल के लिए अच्छी खाद और उसकी वैराइटी पर ध्यान देने की जरूरत होती है. तरबूज का अच्छा साइज रहेगा तो किसानों को ज्यादा फायदा मिलेगा.
तरबूज के पौधों के विकास का शुरुआती चरण है तो एनपीके (जैसे 5-10-10) के संतुलित अनुपात के साथ उर्वरक को लगभग एक पाउंड प्रति 100 वर्ग फीट मिट्टी में, चार बार लगाया जा सकता है. इसे फसल का अच्छा उत्पादन मिल सकता है. तरबूज की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान राज्य में की जाती है. इसकी खेती गंगा, यमुना व नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है. अच्छी खाद मिले तो फिर उत्पादन अच्छा हो सकता है.
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फलों एवं फूलों की संख्या में बढ़वार के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 12:61:0 @ 75 ग्राम एवं प्रोकिसान सूक्ष्म पोषक तत्व 15 @ प्रति पंप छिड़काव करें. इसके 15 दिन बाद पानी में घुलनशील उर्वरक 00:52:34 @ 75 ग्राम एवं प्रोकिसान सूक्ष्म पोषक तत्व 15 @ प्रति पंप छिड़काव करें. इससे अधिक एवं बड़े फलों की प्राप्ति होगी.
खरबूजे के पौधे को रोपने के कुछ दिन बाद खरपतवारों का ध्यान रखना शुरू कर दें. जो खरपतवार हों उन्हें हटा दें वरना खाद-पानी का असर उन पर होता रहेगा. खरपतवार न हटाए जाने की सूरत में फसल का नुकसान होता है. निराई से खरपतवारों को निकालना सबसे अच्छा माना जाता है. मौसम की शुरुआत में जब पौधे लग रहे हों तो गुड़ाई करते समय सावधान रहें कि खरबूजे के पौधों के पास की मिट्टी को बहुत गहराई तक न काटें, अन्यथा जड़ें क्षतिग्रस्त हो जाएंगी.
तरबूज व खरबूज की अच्छी फसल लेने के लिए लगभग वही आवश्यकताएं रहती हैं जो कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए होती हैं. इसके लिए 250 क्विंटल अच्छी सड़ी गोबर खाद के साथ 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. इससे पैदावार अच्छी होगी और किसानों को भरपूर मुनाफा मिलेगा.
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