सरसों रबी की एक प्रमुख तिलहन फसल है. इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है. वहीं इन दिनों देश के कई राज्यों में सरसों की फसल के ऊपर कई रोग का प्रकोप और असर देखने को मिल रहा है. दरअसल पिछले दिनों कड़ाके की ठंड और कोहरे के कारण सरसों की फसल पर रोग का भयंकर प्रकोप बढ़ते जा रहा है. इससे कहीं ना कहीं सरसों की फसल की पैदावार को लेकर किसान चिंतित नजर आ रहे हैं क्योंकि इन रोग से उपज में काफी कमी आ सकती है और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ सकता है. अगर समय रहते इन रोगों और कीटों का नियंत्रण कर किया जाए तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है. आइए सरसों की फसल बचाने के उपाय.
सरसों की फसलों के लिए तना गलन रोग, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग और तुलासिता रोग सरसों के मुख्य रोग हैं. सरसों का यह रोग बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस रोग के लगने से उत्पादन में कमी हो जाती है. इससे किसानों के मेहनत पर पानी फिर जाता है और सरसों के दाने सही से ग्रोथ नहीं कर पाते हैं.
सरसों की फसल में तना गलन रोग लगने से 35 फीसदी तक उपज में नुकसान होता है, यह रोग तराई और पानी भराव वाले स्थानों में अधिक होता है. इस रोग के कारण तने के चारों ओर कवक जाल बन जाता है. साथ ही पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. पौधों की ग्रोथ रुक जाती है. ग्रसित तने की सतह पर भूरी सफेद या काली गोल आकृति पाई जाती है. वहीं इस रोग के नियंत्रण के बारे में बताएं तो सरसों के बुवाई के 50 या 60 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 फीसदी 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. जरूरत पड़ने पर 20 दिन बाद फिर से छिड़काव करें.
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सरसों की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है. पत्तियों पर छोले, हल्के काले, गोल धब्बे बनते हैं. धब्बे में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं. वहीं इसके रोकथाम के लिए सल्फर युक्त रसायनों का इस्तेमाल फायदेमंद माना जाता है. किसान इसका घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें. वहीं ये छिड़काव हर 15 दिनों के अंतराल पर फिर दोहराएं.
सरसों के पौधों में सफेद रोली बीमारी लगने से पौधे में भोजन लेने की क्षमता कम हो जाती है. साथ ही रोली सरसों के पत्तों के साथ तने के रस चूस लेती है, जिससे पौधा पनपता नहीं हैं और दाना कमजोर पड़ जाता है. ऐसे में किसानों को सफेद रोली लगने की स्थिति में फसल पर प्रति एकड़ 25 किलो सल्फर पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा किसान क्रोफेन लिक्विड कीटनाशक का छिड़काव सकते हैं.
तुलासिता रोग लगने पर पत्तियों की निचली स्तर पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में बड़े हो जाते हैं. यही से रोग जनक की बैंगनी रंग की बढ़ोतरी रुई के समान दिखाई देती है. रोग की अवस्था में फूल कलियां नष्ट हो जाती है. वहीं इस रोग से सरसों को बचाने के लिए किसान कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम फीसदी प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. जरूरत के अनुसार यह छिड़काव 20 दिन के अंतराल पर दोहराएं.
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