स्वीटकॉर्न की खेती किसानों के लिए एक फायदे का सौदा होती है. इस खेती में किसान अच्छा मुनाफा कमाते हैं क्योंकि बदलते समय के साथ अब बाजार में इसकी मांग भी काफी बढ़ गई है. ऐसे में किसानों के पास इसकी खेती से संबंधित पूरी जानकारी होनी चाहिए. साथ ही किसानों को यह पता होना चाहिए कि बाजार में किस आकार और क्वालिटी वाले स्वीटकॉर्न की मांग सबसे अधिक होती है. इसलिए स्वीटकॉर्न की सही समय पर तुड़ाई करनी चाहिए और सही तरीके से इसकी ग्रेडिंग भी करनी चाहिए. इससे बाजार में किसानों को अच्छी कीमत मिलती है और किसानों को अच्छा फायदा होता है. स्वीटकॉर्न की खेती करने वाले किसान यह ध्यान दें कि जैसे ही पौधे में नरमंजरी निकलना शुरू हो जाते हैं, तो उसे तोड़ कर अलग कर दें.
इस आधार से नरमंजरी को तोड़कर अलग करने पर स्वीटकॉर्न की गुणवत्ता में सुधार होता है. साथ ही अधिक मात्रा में भुट्टे भी निकलते हैं. इसके साथ ही भुट्टों में सिल्क निकलने के 24 घंटे के अंदर स्वीटकॉर्न की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. अगर इस समय तुड़ाई में देरी की जाती है तो फिर इसके कारण भुट्टों की गुणवत्ता में कमी आती है. किसान ध्यान दें कि 15 दिनों के अंदर अपने खेत से वो दो से तीन बार फसल की तुड़ाई कर सकते हैं. भुट्टों की तुड़ाई करने के बाद ग्रेडिंग की प्रक्रिया होती है जिसपर भी खास ध्यान देना होता है.
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तुड़ाई के तुरंत बाद बेबी कॉर्न के आकार के आधार पर उनकी ग्रेडिंग की जानी चाहिए. इसके लिए भुट्टों को ढंकने वाली पत्तियों को हटाकर उनकी ग्रेडिंग कर लें. इसके बाद उन्हें पॉलीथीन बैग में भरकर बाजार में बेचने के लिए भेज सकते हैं. बर्फ के टुकड़ों के बीच स्वीट कॉर्न को रखकर भेजने से यह पांच दिनों तक फ्रेश रखा जा सकता है. इस तरह से इसे बेचने के लिए पांच दिन का समय मिल जाता है. इस तरह ग्रेडिंग और पैकेजिंग करके बाजार में भेजने पर किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है.
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स्वीटकॉर्न की खेती मक्का की तरह ही की जाती है. इसकी हरी बाली 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है. दिसंबर और जनवरी महीने को छोड़कर साल के किसी भी महीने में इसकी खेती कर सकते हैं क्योंकि सालोंभर इसकी मांग बाजार में रहती है इसलिए किसान सालोंभर इसकी खेती कर सकते हैं. स्वीट कॉर्न की खेती में खर पतवार का नियंत्रण करना बेहद जरूरी होता है. इसलिए इसकी बुवाई के तीन दिन बाद 15 किलोग्राम स्टाजीन को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काल करें. इसके छिड़काव करने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नहीं उगते हैं.
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