उत्तर प्रदेश पूरे देश में गन्ना के उत्पादन में सबसे आगे है. प्रदेश के 28.53 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती हो रही है. प्रदेश के पश्चिम भू-भाग पर सबसे ज्यादा किसान गन्ने की खेती करते हैं. वर्तमान में गन्ने की बुवाई के बाद फसल पर पायरिला यानी Pyrilla Insect का प्रकोप बढ़ चुका है. इन कीट की वजह से गन्ने की फसल को काफी ज्यादा नुकसान भी हो रहा है. इस कीट का संक्रमण अप्रैल से लेकर अक्टूबर माह तक रहता है. यह कीट पत्तियों से रस चूस कर गन्ने की फसल को बेजान कर देते हैं. किसानों के गन्ने की फसल को इन दो प्रमुख कीटों से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद की तरफ से एक एडवाइजरी जारी की गई है. गन्ने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों के बताए गए तरीकों से किसान इन दो कीटों से अपनी फसल को बचा सकता है.
गन्ने फसल में अप्रैल महीने से ही चूसक कीट पायरिला का प्रकोप बढ़ जाता है.किसानों को समय से पहचान कर पौधे और पेडी फसल को इन कीटों से बचाने के लिए विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर के तरफ से चूसक पायरिला के नियंत्रण के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं.
परिषद की तरफ से जारी एडवाइजरी के अनुसार पायरिया का मादा कीट गुच्छों में अंडा देती है. प्रत्येक गुच्छों में 30 से 50 अंडे पाए जाते हैं. एक मादा कीट अपने जीवन काल में कुल 600 से 800 अंडे देती है. वहीं इसी कीट का वयस्क भूरे रंग का होता है. इसके सिर आगे की तरफ चोच जैसा होता हैं. यह कीट प्रौढ़ पत्तियों से रस चूसता है, जिसके चलते यह पत्तियां बाद में पीली पड़ जाती हैं. रस चूसते समय यह कीट मधुस्राव करता हैं. पत्तियों से भोजन नहीं बनने के चलते पौधा कमजोर हो जाता है और इसमें शुगर रिकवरी भी कम हो जाती है.
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गन्ने की फसल में पायरिला कीट के लगने की पहचान किसानों को करनी होती है. उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर की तरफ से किसानों के लिए जारी की एडवाइजरी के अनुसार अगर खेत में सफेद रंग की कोकून दिखाई दे तो किसी भी कीटनाशक का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए खेत की सिंचाई जरूर कर दें. इस कीट से ग्रसित गन्ने के खेत में यूरिया का अधिक प्रयोग ना करें क्योंकि नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग वाले खेत में पायरिला कीट का प्रकोप बढ़ता है.
पायरिला के अंड परजीवी जैसे टेट्रास्टिक्स पायरीली, काइलोन्यूरस पायरीली एवम ओन सिरटस द्वारा प्राकृतिक रूप से 80% पायरिला की संख्या मानसून के बाद नियंत्रित हो जाती है. मेटाराईजीयम एनीसोपली फफूंदी प्रकृति में पायरिला को नष्ट करती है. मानसून के बाद उक्त फफूंदी के स्पोर का छिड़काव करके कम तापक्रम व अधिक आद्रता के कारण पायरिला की संख्या 94% तक कम कर देती है.
अगर प्रभावित फसल में ईपीरिकेनिया मिलैनोल्युका परजीवी के कोकून ना दिखाई दे तो ऐसी स्थिति में 625 लीटर पानी में घोल बनाकर क्लॉरपेरिफ़ास 20 प्रतिशत ईसी दर 800 मिली या प्रोफेनोफ़ास 40 प्रतिशत + साईपर चार प्रतिशत इ.सी दर 750 मिलीलीटर का छिड़काव करें. इससे यह कीट काफी हद तक नियंत्रित हो जाता है.
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