
यूपी समेत कई राज्यों में बाजरा और धान में रोगों के प्रकोप से किसान परेशान हैं. खरीफ सीजन की फसल बाजरा और धान खेतों में पकी खड़ी हैं. लेकिन, तैयार फसल में कई रोगों और कीटों का अचानक प्रकोप बढ़ने से किसानों की मुश्किल बढ़ गई है. बाजरा फसल में अर्गट रोग (Ergot Disease) पैर पसार रहा है, जिससे भुट्टे में दाने की जगह काली गांठें बन रहीं हैं. जबकि, धान की बालियों और तने को झोंका रोग और भूरा फुदका कीट की वजह से नुकसान पहुंच रहा है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड समेत कई राज्यों के बाजरा और धान किसानों को इन रोगों से फसल को बचाने के लिए कृषि एक्सपर्ट ने उपाय बताए हैं.
खरीफ सीजन में श्रीअन्न फसलों की जमकर बुवाई की गई है. इसमें बाजरा की फसल की खूब बुवाई की गई है. लेकिन, इस बार धान और दलहन फसलों का रकबा बढ़ने से बाजरा के रकबे में गिरावट दर्ज की गई है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीते साल 70.94 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस बार 69.91 लाख हेक्टेयर में बाजरा की खेती की गई है. इसी तरह धान की खेती पिछले साल 404.50 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस बार 413.50 लाख हेक्टेयर में की गई है.
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो की ओर से बाजार किसानों को अर्गट रोग यानी चेपा रोग के प्रकोप से सतर्क किया गया है. सलाह में किसानों को अर्गट रोग की पहचान और उससे बचाव का तरीका बताया गया है. कृषि एक्सपर्ट के अनुसार बाजरा में फैल रहे अर्गट रोग में केवल भुट्टों के कुछ दानों पर ही दिखाई देते हैं. इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग के सींक के आकार की गाठें बन जाती हैं, जिन्हें स्केलेरेशिया कहते हैं. अर्गट रोग की वजह से दाना गांठ बन जाता है. इससे उपज प्रभावित होती है.
कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो की सलाह के अनुसार बाजरा किसान अर्गट रोग यानी स्केलेरेशिया से फसल को बचाने के लिए जिरम 80% WP 2 किलो ग्रामम या फिर जिनेब 75% WP 2 किलो ग्राम को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें. इससे किसानों को अर्गट रोग से छुटकारा मिल जाएगा और उपज को होने वाले नुकसान से वह बच जाएंगे.

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो की सलाह के अनुसार धान में भूरा फुदका कीट (brown planthopper) पत्तियों और अंकुरों का रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके प्रकोप से गोलाई में पौधे काले होकर सूखने लगते हैं. इस कीट को हॉपर बर्न भी कहा जाता है. किसान फसल को बचाने के लिए जब भूरा फुदका की संख्या 15 से 20 कीट दिखे तो कार्बोफ्यूरान 3 CG 25 KG प्रति हेक्टेयर या फिर क्लोरपाइरीफास 20% EC 1.50 लीटर प्रति हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
झोंका रोग (Rice Blast) के प्रकोप से धान की पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं जो गहरे कत्थई रंग के होते हैं. पत्तियों के अलावा बालियों, डंठलों, फूल, शाखाओं और पौधे की गांठों पर काले-भूरे धब्बे बनते हैं. इससे पौधे की पोषकता खत्म होने लगती है और उसका विकास रुक जाता है. झोंका रोग की रोकथाम के लिए किसान फसल में कार्बेडाजिम 50% WP 500 ग्राम या फिर मैंकोजेब या जिनेब 75% WP 2 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
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