Maize Farming: पहले के समय में देश में बड़े पैमाने पर मोटे अनाज मक्का की खेती की जाती थी, लेकिन गेहूं की खेती को बढ़ावा मिलने के बाद इनका दायरा लगभग सिमट-सा गया. हालांकि, अब एक बार फिर मोटे अनाज को भोजन में शामिल करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है. मोटे अनाज में मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी आदि फसलें शामिल हैं. अभी रबी सीजन की बुवाई का समय चल रहा है. ऐसे में आज हम आपको मक्का की खेती को लेकर बरती जानी वाली सावधानियों और तकनीकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनसे उपज बढ़ेगी.
मक्के की खेती के लिए खेत तैयार करने के दौरान जुताई के लिए मोल्डबोर्ड हल का इस्तेमाल करें. इसका प्रयोग 2-3 बार करें. इसके अलावा मिट्टी को भुरभुरी करने के लिए रोटावेटर का उपयोग करना बेहतर है. जब जुताई अच्छे से हो जाए तो खेतों में प्रति गोबर खाद या कंपोस्ट का छिड़काव करें. अगर गोबर खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं तो प्रति एकड़ 10 टन का छिड़काव करें.
अब बारी बीजों की बुवाई की आती है, लेकिन इसके पहले इन्हें उपचारित करना जरूरी है, ताकि फसल में बीमारी न लगे और उत्पादन न घटे. बीजोपचार के लिए थायमेथोक्सम 19.8 प्रतिशत, साइनट्रेनिलिप्रोल 19.8 प्रतिशत का 6 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से इस्तेमला करें. मक्का की बिजाई के बाद खेतों में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती है. बुवाई के 45 से 65 दिन बाद मिट्टी में भी नमी चेक करें.
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मक्का के अच्छे उत्पादन के लिए फसल को समय पर खाद देने की जरूरत है, नहीं तो उत्पादन में अंतर आ सकता है. इसके साथ ही खरपतवार का भी ध्यान रखें नहीं तो सारा पोषण खरपतावार अवशोषित कर लेगी और फसल को भारी नुकसान हो जाएगा. इसके लिए खरपतवार नियंत्रक का इस्तेमाल करें और समय-समय पर निराई-गुड़ाई भी करते रहें.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के रिसर्च संस्थान (IARI) ने मक्का की पूसा पॉपकॉर्न हाइब्रिड-2 (एपीसीएच 3) किस्म बनाई है. यह एक सिंचित रबी किस्म है. इस मक्का किस्म की खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्षेत्रों की जा सकती है. इन राज्यों की जलवायु के हिसाब ये यह कम लागत में अच्छी पैदावार देने में सक्षम है. यह किस्म 103 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जिससे प्रति हेक्टेयर 46 क्विंटल तक की पैदावार आसानी से हासिल की जा सकती है.
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