बिहार के मिथिलांचल का मखाना अपने स्वाद और गुणवत्ता के चलते देश-विदेश में अपनी पहचान बना रहा है.पिछले साल जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिलने के बाद मिथिलांचल मखाने की ग्लोबल पहचान बनी है.असल में बिहार देश का प्रमुख मखाना उत्पादक राज्य है. जहां देश का कुल 90 फीसदी मखाने का उत्पादन होता है, लेकिन बिहार में पैदा होने वाला प्रत्येक मखाना उच्च क्वालिटी का नहीं होता है. मखाने को तैयार करते वक्त ही उसे ग्रेड के हिसाब से बांटा जाता है. आइए जानते हैं कि अच्छे क्वालिटी के मखाने की पहचान कैसे की जा सकती है, जिससे ग्राहक मखाना देख कर उसकी कीमत आसानी से तय कर सकते हैं.
मखाना को फसलों का काला हीरा भी कहा जाता है क्योंकि काले खोल के अंदर से सफेद मखाना निकलता है. इसके औषधीय गुणों के कारण, यह महंगे ड्राईफ्रूट्स जैसी ऊंची क़ीमत पर बिकता है. मखाना जो हम खाते है, उसके कई तरह के ग्रेड होते है. ग्रेड और सूत के आधार पर ही मखाना का भाव निर्धारित होता है. पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार यादव के अनुसार मखाने की लंबाई यानी सूत के आधार पर ही उसका क्वालिटी आंकी जाती है.
यानी जितना लंबा मखाना होगा, उसकी क्वालिटी उतनी ही बेहतर मानी जाती है. उन्होंने बताया कि एक सूत करीब 3.175 मिली मीटर के बराबर होता है. मखाना के ग्रेड में 6 या 6.5 सूत तक का लावा सबसे अच्छी क्वालिटी का मखाना का माना जाता है.
पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार यादव सबसे लंंबा मखाना रसगुल्ला मखाना होता है, जिसे सबसे बेहतर मखाना जाता है. उन्होंने बताया कि रसगुल्ला मखाना बाजार में 1200 से 1300 रुपये प्रति किलो तक बिकता है.
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भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार यादव कहते हैं कि मखाना के गुड़ी से लावा निकालने के लिए होने वाली प्रोसेसिंग एक समान होती है, लेकिन उसमें से कई साइज वाले मखाना के लावा निकलते हैं, जिसकी ग्रेडिग बाद में की जाती है. उन्होंने बताया कि सबसे लो ग्रेड में वह लावा होता है, जिसका प्रोसेसिंग के दौरान गुड़ी (बीज) फूटता नहीं है. इस तरह के लावा बाजार में बहुत कम दाम में बिकते हैं. दूसरा होता है ढुरी, इसमें गुड़ी से लावा फूटता है, लेकिन साइज़ बहुत छोटा होता है. इसका उपयोग मखाना का खीर, आटा सहित अन्य कार्यों में किया जाता है.
डॉ पंकज कुमार यादव ने बताया कि ग्रेडिंंग के अनुसार जो लावा एक से डेढ़ सूत का होता है, वो करीब 150 से 200 रुपये प्रति किलो बिकता है. उसके बाद दो से ढाई सूत का लावा 250 से 300 रुपये प्रति किलो किलो और साढ़े चार सूत के लावा का भाव 400 से 500 रुपये प्रति किलो है.उन्होंने बताया कि पांच सूत के साइज वाला लावा की कीमत 800 से 1000 तक भाव रहते हैं. यह लावा साइज में थोड़ा बड़ा और गोल रहता है और इस लावे पर कहीं धब्बा नही रहता है.सबसे बेहतर क्वालिटी वाले मखाना का लावा 6 सूत का होता है. इसे रसगुल्ला मखाना भी कहते हैं. यह पूरी तरह से सफेद और बड़ा लावा होता है. इसमें किसी तरह के दाग धब्बे तक नहीं होते हैं. एक अच्छा मखाना पहचानने का सरल तरीका है.
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किसान तक से बातचीत में डॉ.पंकज ने कहा कि 2022 में मखाना को जीआई टैग मिलना बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इस साल किसानों को मखाना की सही कीमत नहीं मिली, इसको लेकर वह सुझाव देते हुए कहते हैं कि अगर किसान समूह बनाकर प्रोसेसिंग से लेकर मार्केटिंग सब कुछ करें तो अच्छी कमाई कर सकते हैं. अगर किसान व्यापारियों के भरोसे रहेंगे तो उन्हें लाभ नहीं मिल पाएगा, जो उन्हें मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस साल मखाना का उत्पादन अधिक हुआ है, लेकिन बेहतर बाजार नहीं होने के कारण किसान को सही कीमत नहीं मिल पा रही है. इसलिए किसानों को मखाना बेचने के लिए खुद बाजार में उतरना पड़ेगा.
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