हिमाचल प्रदेश में बीते 8 साल में पहली बार अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने सबसे सूखे दर्ज किए गए हैं. इसकी वजह से मिट्टी में कम नमी फसलों की ग्रोथ में बाधा बन सकती है. इसके अलावा सूखे की स्थिति से होने वाली दिक्कतों से किसानों को बचाने के लिए डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी की ओर से फसल प्रबंध के उपाय बताए गए हैं और किसानों को सलाह जारी की गई है.
विश्वविद्यालय के अनुसार हिमाचल प्रदेश में में 8 वर्षों में यानी 2016 के बाद से अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने सबसे सूखे दर्ज किए गए. सोलन जिले में भी अक्टूबर और नवंबर में समान वर्षा की काफी कमी देखी गई. सोलन में सबसे हालिया बारिश सितंबर में हुई थी जो कि सामान्य से भी काफी कम थी. परिणामस्वरूप, मिट्टी में नमी की कमी से कृषि गतिविधियों को जूझना पड़ रहा है. मानसून के बाद अक्टूबर और नवंबर माह में आम तौर पर बहुत ही कम वर्षा होती है.
रबी मौसम के लिए सब्जियों की फसलें, जिनमें पत्ता गोभी, फूलगोभी, मटर, प्याज, लहसुन और अन्य रूट फसलें शामिल हैं, को उनके विकास के महत्वपूर्ण चरणों के दौरान पर्याप्त मृदा की नमी की आवश्यकता होती है. वर्षा की कमी इन फसलों की पैदावार को प्रभावित करती है, जिसके संभावित परिणाम जल्दी फूल आना, फली का आकार छोटा होना और मटर की पैदावार में कमी हो सकती है. मिट्टी में कम नमी भी फलों के पौधों को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे जड़ों का विकास रुक जाता है और वे बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं.
एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाना: पानी की कमी से निपटने के लिए किसानों को मोनो-क्रॉपिंग से परहेज करने और फलों की खेती और पशुधन को एकीकृत करते हुए बहु-उद्यम खेती अपनाने पर विचार करना चाहिए. इससे साल के इस समय अक्सर होने वाली पानी की कमी के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी.
कृषि वानिकी मॉडल: किसानों को अप्रत्याशित मौसम स्थितियों के प्रति अपना लचीलापन बढ़ाने के लिए फल आधारित कृषि वानिकी मॉडल स्थापित करने पर जोर देना चाहिए.
सूखा फसल किस्में: गेहूं की खेती के लिए किसानों को सूखा प्रतिरोधी देर से बोई जाने वाली किस्मों जैसे HPW-155 और HPW-368 का चयन करना चाहिए. इन किसानों ने पहले ही गेहूं की बुवाई कर दी है, उन्हें क्राउन रूट इनिशिएशन चरण में जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान करनी चाहिए.
प्याज की रोपाई में देरी करें: सूखे की स्थिति का सामना करने वाले क्षेत्रों में किसान दिसंबर के आखिरी सप्ताह तक प्याज की रोपाई में देरी करने की सलाह दी जाती है. जिन किसानों ने पहले से ही प्याज, लहसुन, रेपसीड, सरसों, तोरिया और मसूर जैसी फसलें लगा रखी हैं. उन्हें विकास के महत्वपूर्ण चरणों में जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान करनी चाहिए.
जल कुशल सब्जियां चुनें: पानी बचाने के लिए किसानों को कम पानी की आवश्यकता वाली सब्जियों की फसलें लगाने पर विचार करना चाहिए. जैसे मूली, शलजम, पालक और चुकंदर. इन फसलों का उपयोग फलों के बगीचे या कृषि वानिकी प्रणालियों में अंतर फसल के रूप में भी किया जा सकता है.
फसल विविधीकरण और जल संरक्षण प्रथाओं को अपनाएं: पानी के तनाव को प्रबंधित करने के लिए फसल विविधीकरण और सूखी घास के अवशेषों के साथ मल्चिंग जैसी कृषि प्रथाओं के उपयोग की अनुशंसा की जाती है. नमी को संरक्षित करने के लिए घास को 5-10 सेमी. की मोटाई में पौधों के तौलियों में भूमि पर लगाया जाना चाहिए.
एंटी-ट्रांसपेरेंट का इस्तेमाल करें: बड़े खेतों में जहां मल्चिंग या सिंचाई संभव नहीं है, एंटी-ट्रांसपिरेंट्स के माध्यम से पानी के नुकसान को कम करने और पौधों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एंटी-ट्रांसपिरेंट्स (उदाहरण के लिए, Kaolin 5 किग्रा/100 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर) के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है.
सिंचाई: रबी फसलों की समय पर बुआई और वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए किसानों को कृषि सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने पर विचार करना चाहिए. खेत में वर्षा जल संचयन संरचनाओं को स्थापित करने से सूखे के दौरान जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान की जा सकती है और महत्वपूर्ण फसल चरणों में नमी के तनाव को प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है. जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए कुशल सिंचाई कार्यक्रम महत्वपूर्ण है.
पौधों की रक्षा करें: किसानों को छोटे फल पौधों को कठोर शुष्क परिस्थितियों से बचाने के लिए पौधों को बोरियों से ढक देना चाहिए और दक्षिणी और दक्षिण पूर्वी हिस्से को खुला छोड़ देना चाहिए.
नए वृक्षारोपण से बचें: किसानों को पर्याप्त वर्षा होने तक नए फलों के पेड़ों के रोपण को स्थगित करने की सलाह दी जाती है. यदि नए वृक्षारोपण आवश्यक हैं, तो इस शुष्क अवधि के दौरान पौधों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए नियमित जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान करना महत्वपूर्ण है.
प्राकृतिक खेती प्रथाएं: प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को जीवाअमृत (फोलियर स्प्रे के रूप में 10-20% और 15 दिनों के अंतराल पर ड्रेंचिंग करनी चाहिए), वास्पा लाइन को ताजा करना चाहिए और फसलों की सुरक्षा के लिए मल्च का इस्तेमाल करना चाहिए.
उर्वरक प्रयोग से बचें: किसानों को सलाह दी जाती है कि वे इस सूखा अवधि के दौरान खेतों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करना चाहिए. इसके बजाय नमी को संरक्षित करने के लिए मल्च का उपयोग किया जाना चाहिए.
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