देश के कई हिस्सों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मौसम विभाग ने आने वाले तीन-चार दिनों में तापमान में अधिक गिरावट होने का पूर्वानुमान जारी किया है. ऐसे में फसलों को पाले से नुकसान होने की आशंका है.असल में पाला रबी सीजन की सरसों, मटर, चना, और सब्जियों की फसलों को नुकसान पहुंचाता है. फसलों में तब पाला पड़ता है, जब सर्दी के मौसम में दोपहर के पहले ठंडी हवा चल रही हो और हवा का तापमान बिल्कुल कम होने लग जाए और दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए तब फसलों में पाला पड़ने की संभावनाएं बढ़ जाती है. ऐसे में फसलों को पाला से बचाना जरूरी होती है. आइये जानते हैं कि पाले की पहचान क्या है और कैसे पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.
फसलों में पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं में मौजूदा पानी जमने लगते हैं. जिससे उसके कोशिका की भित्ति फट जाती है. जिससे पौधों की पत्तियां, कोंपलें, फूल, फल सब धीरे-धीरे सूखने लगते हैं. इस प्रकार फसलों की कोमल टहनियां पाले से नष्ट हो जाती है. पाले का अधिक असर फूलों और पत्तियों पर ही पड़ता है. पाले के असर से फल सिकुड़ने लगते हैं. फलों के बालियों में दाने नहीं बनते हैं. पाले से प्रभावित फसलों का हरा रंग समाप्त हो जाता है और पौधों का रंग सफेद सा दिखने लगता है. जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है.
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जब तापमान में लगातार गिरावट आने लगे और तापमान लगभग 4 डिग्री से कम होने लगे तब फसलों में पाला पड़ता है. इसलिए फसलों को पाले से बचाने के लिए कुछ परंपरागत औऱ रासायनिक तरीकों को अपनाकर किसान अपनी फसलों में पाला लगने से बचा सकते हैं.
इस कड़कड़ाती ठंड में किसान अपनी फसलों को पाले से बचाने के लिए गंधक के तेजाब का इस्तेमाल करें. इस तेजाब की मात्रा एक हजार लीटर पानी में 1 लीटर सांद्र और 0.1% गंधक का तेजाब मिलाकर घोल तैयार करें और फसलों पर छिड़काव करें. वहीं घुलनशील गंधक में 0.2% घोल का छिडकाव भी कर सकते हैं. इससे बचने के और भी तरीके हैं. जैसे खेत की उत्तर पश्चिम दिशा में जिधर से शीतलहर आती हो उधर फसलों के अवशेष, कूड़ा-करकट, घास-फूस जला कर धुआं कर सकते हैं. वहीं पाले के दिनों में फसलों में सिंचाई करने से भी पाले का असर कम होता है. ऐसे ही अलग-अलग उपाय अपनाकर किसान अपनी फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.
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