रबी मक्का की उपज बढ़ने से बिहार के किसानों को फायदाबिहार में सर्दियों में उगाया जाने वाला मक्का किसानों की कमाई का एक मुख्य जरिया बनकर उभरा है. फिर भी क्लाइमेट चेंज का असर, मिट्टी से जुड़ी समस्याओं और पारंपरिक खेती के तरीकों के कारण इसकी पूरी क्षमता का अक्सर इस्तेमाल नहीं हो पाता. इससे किसानों की कमाई उतनी नहीं बढ़ पाती जितनी बढ़नी चाहिए. इसे लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने कई तरह के सुझाव दिए हैं. बुवाई के समय और तरीकों को बेहतर बनाने से लेकर सही हाइब्रिड चुनने और पानी और पोषक तत्वों के इस्तेमाल को बेहतर बनाने तक, कई ऐसे फैक्टर्स की पहचान की गई है जो किसानों को ज्यादा पैदावार और कमाई दे सकते हैं.
मक्के की बुवाई की तारीख उसकी पैदावार तय करती है, इसलिए बिहार जैसे अलग-अलग मौसम वाले क्षेत्रों में बुवाई की तारीख को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इसमें सर्दियों में मक्का बोने के लिए सबसे सही समय 25 अक्टूबर से 7 नवंबर के बीच बताया गया है. इस समय मिट्टी में आमतौर पर नमी होती है, और तापमान की स्थिति बीज के अंकुरण और शुरुआती बढ़वार के लिए अनुकूल होती है.
ऐसा देखा गया है कि इस दौरान बोए गए मक्के की पैदावार 12 टन/हेक्टेयर से कभी-कभी 14 टन/हेक्टेयर तक हो सकती है. इसके उलट, नवंबर के आखिर और दिसंबर में की गई बुवाई से पैदावार में 36% तक की कमी दर्ज हो सकती है.
ICAR की रिसर्च में पता चला है कि ऊंची क्यारियों में मक्का की बुवाई से पैदावार बहुत अच्छी मिलती है, खासकर निचले इलाकों में जहां अक्सर पानी भर जाता है. स्टडी में यह भी पाया गया कि ऊंची क्यारियों में बुवाई (RBP) से बेहतर ड्रेनेज और जड़ों के पास हवा मिलने के कारण पानी भरने का खतरा कम हो सकता है. इससे जड़ों का विकास स्वस्थ और तेज होता है पौधा ज्यादा मजबूत होता है. इससे किसान को बंपर पैदावार मिलती है.
बीज उपचार का मतलब है, बुवाई से पहले बीजों पर फफूंदीनाशक और कीटनाशक जैसे सुरक्षा के उपाय करना. रिसर्च से जाहिर है कि उपचारित बीजों से 20.7 प्रतिशत अधिक उपज मिल सकती है. फसल लगाने के शुरुआती स्टेज में बीज उपचार के फायदे बहुत ज्यादा दिखाई देते हैं.
उपचारित बीज मिट्टी से होने वाले रोगों और कीटों से अच्छी तरह सुरक्षित रहते हैं, जो पौधे की अंकुरण अवस्था में गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं. अगर किसान बीजों का सही ढंग से उपचार करें तो फसल की पैदावार बढ़ सकती है.
अन्य सभी फैक्टर्स में मक्का उत्पादन के दौरान पानी का सही इस्तेमाल बहुत जरूरी बताया गया है. इसके लिए किसान को सिंचाई की बेहतर तकनीक और तरीका इस्तेमाल करना होगा. ICAR की स्टडी में सुझाव दिया गया है कि स्मार्ट सिंचाई प्रबंधन पानी के उपयोग को बेहतर बना सकता है कि फसलों को सही समय पर पर्याप्त मात्रा में पानी दिला सकता है.
वहीं, ज्यादा सिंचाई से जलभराव और पोषक तत्वों का लीचिंग (खत्म) हो सकता है, जबकि कम सिंचाई से पौधों में तनाव और पैदावार में कमी आ सकती है. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे मिट्टी की नमी पर बारीकी से नजर रखें और फसलों की बेहतर पैदावार के लिए सिंचाई को एडजस्ट करें.
मक्का में ज्यादा पैदावार पाने के लिए सभी पोषक तत्वों का संतुलित इस्तेमाल बहुत जरूरी है. ज्यादा पैदावार वाली जमीनों के लिए अनुमान लगाया गया कि उन्हें 243.85 kg/ha नाइट्रोजन (N), 165.51 kg/ha फास्फोरस (P), और 106.74 kg/ha पोटेशियम (K) की जरूरत होती है. ये सभी पोषक तत्व पौधों की ग्रोथ और विकास के लिए बहुत जरूरी हैं. मिट्टी में इनकी उपलब्धता को ठीक से मैनेज करने की जरूरत है ताकि इनकी कमी या असंतुलन से बचा जा सके.
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