आम की बागवानी को लेकर CIHS ने दिया सुझावआम की बागवानी में सही समय पर सही देखभाल ही अच्छी पैदावार की कुंजी है. इसी उद्देश्य से केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (ICAR-CISH), रहमानखेड़ा, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए मौसम आधारित सलाह जारी की है. संस्थान द्वारा जारी की गई नई जानकारी और सुझावों को अपनाकर किसान न केवल अपने पुराने बागों को फिर से जवान बना सकते हैं, बल्कि रोगों और कीटों से बचाकर फलों की गुणवत्ता और मुनाफे में भी भारी बढ़ोतरी कर सकते हैं.
आम के बागों में अच्छी पैदावार के लिए पेड़ों के बीच धूप और हवा का पहुंचना बहुत जरूरी है. अक्सर देखा गया है कि 15 से 30 साल पुराने बागों में पेड़ बहुत घने हो जाते हैं और उनकी डालियां एक-दूसरे से टकराने लगती हैं, जिससे बाग के अंदर धूप नहीं पहुंच पाती और फल सिर्फ बाहरी किनारों पर लगते हैं.
वैज्ञानिकों की सलाह है कि ऐसे पेड़ों के बीच के हिस्से को खोलना चाहिए. इसके लिए पेड़ के बीच में सीधी बढ़ने वाली एक या दो मुख्य टहनियों को काट देना चाहिए. ऐसा करने से पेड़ के अंदर तक धूप पहुंचती है, जिससे फलों का आकार बड़ा होता है, उनकी गुणवत्ता सुधरती है और पैदावार भी बढ़ती है. कटी हुई जगहों पर फफूंदी से बचाव के लिए दवा का लेप लगाना न भूलें.
अगर आपके आम का बाग 40 साल से ज्यादा पुराना है और उसमें फल कम आ रहे हैं, तो उसे उखाड़ने की बजाय "जीर्णोद्धार तकनीक से सुधारा जा सकता है. इस काम के लिए दिसंबर और जनवरी का महीना सबसे अच्छा होता है. इसमें पेड़ की उन शाखाओं को काटा जाता है जो बहुत ऊपर जा रही हैं या धूप रोक रही हैं. पेड़ की मुख्य 4-5 शाखाओं को चुनकर बाकी खराब टहनियों को हटा देना चाहिए. चुनी हुई शाखाओं को भी ऊपर से काट दिया जाता है ताकि नई कोपलें फूट सकें. कटी हुई जगह पर गाय का ताजा गोबर या बोर्डो पेस्ट कॉपर सल्फेट और चूना का लेप जरूर लगाएं ताकि पेड़ को कोई बीमारी न लगे. इस तकनीक से पेड़ 3 साल में दोबारा अच्छी फलत देने लगते हैं .
बरसात के बाद अक्सर आम के पेड़ों में "उल्टा सूखा रोग" डाईबैक देखा जाता है. इसमें टहनियां सिरे से नीचे की ओर सूखने लगती हैं और कभी-कभी छाल से गोंद भी निकलता है. अगर आपके बाग में ऐसे लक्षण दिखे, तो सूखी हुई टहनी को सूखे हिस्से से करीब 10-20 सेंटीमीटर नीचे से काट दें. कटाई के बाद पेड़ पर 'कॉपर ऑक्सीक्लोराइड' दवा का छिड़काव करना चाहिए. इसके लिए 3 ग्राम दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें और छिड़काव करें. कटी हुई टहनी के मुहाने पर भी इसी दवा का गाढ़ा पेस्ट (5%) लगाना फायदेमंद होता है.
उत्तर भारत के आम के बागों, गुझिया कीट, मिली बग कीट दिसंबर-जनवरी में पेड़ के तने पर जमीन से 1.5 से 2 फीट ऊपर पॉलीथिन की 25-30 सेमी चौड़ी पट्टी कसकर बांध दें. पट्टी के निचले हिस्से पर ग्रीस लगा दें, ताकि कीड़े रेंगकर ऊपर न चढ़ सकें. वहां "जाला कीट" की समस्या अक्सर देखी जाती है. यह कीड़ा पत्तियों को जाले में लपेट देता है. अगर बाग में इसका हमला दिखे, तो सबसे पहले जालों को किसी डंडे या यंत्र की मदद से हटाकर जला दें. रासायनिक उपचार के लिए 'लेम्बडासायहलोथ्रिन' दवा का इस्तेमाल करें. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर पेड़ों पर छिड़काव करने से इस कीट से छुटकारा मिलता है.
कभी-कभी आम के पेड़ की पत्तियां अचानक मुरझाने लगती हैं और 1-2 महीने में पूरा पेड़ सूख जाता है, जिसे "उकठा रोग" कहते हैं. ऐसे पेड़ों के तनों से अक्सर गोंद निकलता हुआ भी देखा जा सकता है. इसके इलाज के लिए पेड़ की जड़ों के पास की मिट्टी में 'थायोफेनेट मिथाइल' दवा का घोल डालना चाहिए. पेड़ की उम्र के हिसाब से 50 से 400 ग्राम दवा को पानी में मिलाकर जड़ क्षेत्र में डालें ताकि वह 1-1.5 मीटर गहराई तक पहुंच जाए. किसान ध्यान रखें कि जब पेड़ों पर बौर खिले हों, तो कीटनाशक का छिड़काव न करें, क्योंकि इससे परागण करने वाले मित्र कीट मर सकते हैं.
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