खरीफ सीजन में दलहन फसलों की जमकर बुवाई की गई है. अच्छी मॉनसूनी बारिश ने किसानों को अच्छे उत्पादन की उम्मीद जगा दी है. लेकिन, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में तेज बारिश के चलते अरहर के खेतों में पानी भर गया है. ज्यादा दिनों तक खेत में यह पानी रुका तो पौधों को सड़ा देगा और फाइटोफ्थोरा रोग का प्रकोप बढ़ जाएगा. ऐसे में किसानों को पानी की निकासी का प्रबंध करना जरूरी है. जबकि, पत्ती लपेटक कीट और फली भेदक कीट पौधे और फलियों को नष्ट कर देते हैं. फसल में इन समस्याओं की रोकथाम के लिए उपाय बताए जा रहे हैं, जिनको अपनाकर किसान उपज को सुरक्षित कर सकते हैं.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार इस बार खरीफ सीजन में दालों की बंपर बुवाई हुई है. 12 अगस्त तक के आंकड़ों के अनुसार अरहर की बुवाई 45 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो बीते साल इसी सीजन में 39 लाख हेक्टेयर की तुलना में करीब 6 लाख हेक्टेयर अधिक है. इसी तरह मूंग दाल की बुवाई 33 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है. जबकि, पिछले साल इसी अवधि तक केवल 29 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हो सकी थी. इसके अलावा उड़द दाल की बुवाई 28 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है. वहीं, अन्य सभी दालों की बुवाई रकबा मिलाकर 118 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई है, जो पिछले सीजन में हुई 111 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 7 लाख हेक्टेयर बुवाई अधिक है.
खरीफ सीजन के लिए जुलाई के पहले सप्ताह में जिन किसानों ने अरहर की बुवाई के लिए सही विधि का इस्तेमाल किया है उन्हें अधिक बारिश से कम नुकसान की संभावना है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार अरहर की बुवाई के लिए खेती की मिट्टी खारी नहीं होनी चाहिए और मिट्टी का पीएच मान 5 से 8 के बीच हो. इसके अलावा खेत में जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए. जिन राज्यों में ज्यादा बारिश हुई है और खेतों में पानी भर गया है, उन किसानों को पानी तुरंत निकालना होगा. 1 हफ्ते से ज्यादा पानी रुका और पौधा डूबा रहा तो फसल चौपट होने का खतरा रहता है. वहीं, जल्दी पकने वाली अरहर किस्मों के लिए 10 दिन से ज्यादा पानी नहीं रुकना चाहिए.
अरहर की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है. खरीफ सीजन में बोई जाने वाली अरहर में सिंचाई कम करनी होती है. इस सीजन में अरहर की फसल को तभी पानी की जरूरत होती है, जब बारिश का अभाव हो. ऐसे में पौधे पर फूल आने के समय और फलियों में दाना पड़ने के समय सिंचाई करनी होती है. अरहर की फसल में फलियों में दाना पड़ते समय सिंचाई करने से उत्पादन में भारी व बढ़ोत्तरी होती है.
खेत में कई दिनों तक पानी भरे रहने से फाइटोफ्थोरा रोग का प्रकोप बढ़ने लगता है. जबकि, खेत में पानी निकासी के बाद भी इस रोग के फैलने का खतरा रहता है. फाइटोफ्थोरा रोग से पौधे की जड़ और तने में सड़न पैदा हो जाती है. फाइटोफ्थोरा रोगाणु खेत में अंकुरों के उभरने से पहले और बाद में नमी और पौधों के विभिन्न विकास चरणों में तने की सड़न का कारण बनता है.
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