पानी की गोली, जी हां. आप को सुनकर हैरानी होगी लेकिन आज पानी की यह गोली एक हकीकत है. ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के दौर में खेती बहुत ही अनिश्चित हो गई है. बारिश की कमी की वजह से कई फसलों के खराब होने और सूखा की वजह से किसानों की स्थिति मुश्किल हो जाती है. हाइड्रोजेल वही पानी की गोली है जो उन्हें मुश्किल परिस्थितियों से बचाने में मददगार हो सकती है. पानी के संकट के अलावा सिंचाई में पानी का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है. वैज्ञानिक लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं जिससे पानी की बर्बादी को रोका जा सके और सूखे की स्थिति में किसानों की मदद की जा सके.
हाइड्रोजेल किसी पौधे के जड़ के क्षेत्र के चारों ओर वॉटर स्टोरेज के तौर पर काम करती है. पानी की उपस्थिति में, यह मूल मात्रा से करीब 200 से 800 गुना तक फैल जाती है. सिंचाई और बारिश का पानी रोकने की पर्याप्त संभावना है. इसे बाद में लंबे समय तक फसल की आवश्यकताओं के लिए इकट्ठा किया जा सकता है. फिर इसे धीरे-धीरे छोड़ा जा सकता है. साल 2018-2019 में भारत सरकार ने पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन की ओर से एक राष्ट्रीय हिमालयी मिशन के तहत त्रिपुरा की सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने एक प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था.
यह भी पढ़ें-क्या है अमरूद बागवानी घोटाला जिसने पंजाब को हिला कर रख दिया है? करोड़ों के घपले का है मामला
इस प्रोजेक्ट के तहत सिंचाई में पानी की बर्बादी को रोकने, सूखे की मार को कम करने, उर्वरकों की क्षमता को बढ़ाने जैसे मकसद से रिसर्च को मंजूरी दी गई थी. यूनिवर्सिटी के केमिकल एंव पॉलीमर इंजीनियरिंग विभाग के डॉक्टर सचिन भलाधरे के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजल को बनाने में सफलता अर्जित की थी. अपनी रिसर्च में उन्होंने पाया था कि हाइड्रोजेल से निर्धारित मात्रा में पानी वितरण की वजह से जमीन में जल ठहराव का स्तर 50 से 70 फीसदी तक बढ़ जाता है.
हाइड्रोजेल भी एक तरह का पॉलीमर ही होता है और यह एक चेन की तरह होता है. इसमें बीच में खाली जगह होती है और यह एकदम किसी जाल की तरह नजर आता है. उसमें भी बीच में खाली जगह होती है और उसी तरह से इसमें भी खाली जगह होती है. यहां पर पानी इकट्ठा हो जाता है और धीरे-धीरे पानी को छोड़ता है. इसमें इवैपरेशन यानी वाष्पीकरण नहीं होगा. इस रिसर्च की मानें तो लगातार पानी मिलने से खेतों में उपज तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ फूलों और फलों की गुणवत्ता भी बढ़ती है. साथ ही साथ सूखे से भी खेती को बचाया जा सकेगा और फसले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपट सकेंगी.
यह भी पढ़ें-क्या है खादों की ओवरडोज? इसके असर की कैसे करें पहचान, रोकथाम का उपाय भी जानें
वैज्ञानिकों की मानें तो हाइड्रोजेल जो सेल्यूलोज से बने होते हैं वह सूरज की रोशनी में नष्ट हो जाते हैं. इनसे किसी तरह का कोई पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है. यह आसानी से पानी सोख सकता है और पानी का रिसाव भी कर सकता है. साथ ही यह 35 से 40 सेंटीग्रेट तापमान में हाइड्रोजेल कारगर है. पानी भरने या फिर फूलने की क्षमता में उसके शुष्क भार से 400 गुना ज्यादा है. एक हेक्टेयर भूमि में सिर्फ एक से चार किलो हाइड्रोजेल से सिचाईं संभव है. यह जेल की गोलियां मिट्टी में आठ महीने से एक साल तक कारगर हो सकती है. इससे सिचाईं के 60 फीसदी पानी की बचत होती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today